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 श्री हरिमोहन झा

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(एहि स्तंभक उद्देश्य अहाँ सभक समक्ष एहन कथा आदि के राखब अछि, जे अपना समय मे बहुत चर्चित भेल आ हमर भाषा आ साहित्यक अनमोल धरोहरि थिक । एहि अंक मे प्रस्तुत अछि हरिमोहन बाबूक प्रसिद्ध कथा ‘तिरहुताम’)

[अपन जातीय संस्कार मे बहुत रास एहन वस्तु अछि, जे आधुनिक संदर्भ मे अप्रासंगिक तँ भैये गेल अछि, हमरा सभक पछुआयल रहबाक प्रमाणो मानल जा सकैत अछि । ई कथा ओहन निरर्थक होइत परम्परागत प्रवृति पर समधानि कऽ चोट करैत अछि आ पाठक कें सोचबाक लेल एकटा ठोस प्रश्न दऽ दैत अछि । अपन संदेश मे बहुत स्पष्ट आ सपाट होइतो कथा मनोरंजक स्थिति सभ सँ साक्षात्कार करबैत अन्त मे पाठकक सोच कें उकसबैत अछि ।]

हमरा पुर्णियां जैबाक छल । परन्तु जे गाड़ी ७ बजे साँझ मे कटिहार पहुंचबाक रहय से पहुंचल ९ बजे राति मे । परिणाम ई भेल जे कनेक्शन छुटि गेल । आब भोर मे ५ बजे गाड़ी भेटत । राति भरि एतहि स्टेशन मे रहय पड़त । अगत्या वेटिंग रूमक बाट धैलहुँ । कुली मांथ पर ट्रंक-बिस्तर लऽ कऽ पाछाँ चलल ।

एतबहि मे एक विशाल सज्जन हमरा ठिकिया कऽ ताकय लगलाह । ओ हमर नाम पुछलन्हि और पुर्णियां जैबाक बात बूझि अपना आदमी कें हुकुम देलन्हि - रौ मलंगवा, तकै की छें । कुली सँ सभटा वस्तु छीनि ले !

हमरा बकर-बकर मुंह तकैत देखि ओ बजलाह - अपने हमर सम्बन्धी थिकहुं । अपनेक माम ओ हमर पीसा दुनू साक्षात्‌ साढू । तखन हमरा कटिहार मे अछैत अपने राति भरि वेटिंगरूम मे सूती, ई कतहु होय ।

हम लाख अनुनय-विनय कैल, परन्तु सभटा व्यर्थ भेल । ओ कहय लगलाह - हम कटिहार मे ठेकेदारी करै छी । अपनो मकान बनि रहल अछि । बड्‌ड भाग्य सँ अपनेक पदार्पण भेल अछि । आब चलि कऽ ओहि स्थान के पवित्र कऽ दिऔक ।

ओ पुन: अधिकार पूर्ण स्वर मे आदमी कें आदेश देलन्हि । आदमियो तेहन जबर्दस्त जे तुरन्त सभटा वस्तुजात उठा कऽ काँख तर मे पजिया लेलक ।

हमर प्रतिवाद करबाक शक्ति कुण्ठित भऽ गेल । तथापि विनम्र स्वरें कहलिऐन्ह - भोरगरे पांच बजे ट्रेन पकड़बाक अछि तें एहिठाम वेटिंगरूम मे ...।

ओ बात कटैत बजलाह - राम-राम ! एहिठाम वेटिंग रूम मे रहब? ई हमरा अछैत नहि भऽ सकैत अछि । पांच बजे कोन कथा, हम चारिए बजे गाड़ी पर बैसा देब ।
हम पुछलिऐन्ह - अपने कतबा दूर पर रहै छी ?

ओ बजलाह - दूर किछु नहि । एहिठाम सं दू डेग पर छैक । ओहिठाम पाभरि सिद्ध चाउर भेटत । निश्चिन्त भऽ अपना मड़ैया मे सूतब और एहिठाम कटिहार मे आबि कऽ गाड़ी छूटि जायत? लाठीक हाथे रोकि लेबैक ।

हुनका स्वर मे तेहन आत्मविश्वास भरल रहैन्ह जे पुन: किछु पुछब उचित नहि बूझि पड़ल । ओ आदमी के हुकुम देलन्हि - तों आगां बढ़ि कऽ ठीक कर गऽ । हम हिनका नेने अबै छिऐन्ह ।

ओ आदमी आगां बढ़ि गेल और हम हुनका पाछां-पाछां चलय लगलहुं । जखन एक-डेढ़ माइलक करीब चलल भऽ गेल तखन हम विनयपूर्वक कहलिऐन्ह - एकटा रिक्सा कऽ लेल जाइत तऽ नीक होइत ।

ओ बजलाह - आब तऽ पहुंचि गेलहुं । दूर रहितैक तऽ हम स्टेशन पर रिक्सा नहि कऽ लितहुं?

आब हम की बाजू? चुपचाप हुनक पदानुसरण करय लगलहुं । जखन पुन: एक-डेढ़ माइल भऽ गेल, तखन ओ आश्वासन देमय लहलाह - वैह जे अगिला लालटेनक खाम्ह देखैत छिऐक, ताहि सँ सटले गली मे अपन मकान अछि । बस, एक पौआ बुझू ।

अन्ततोगत्वा हमरा लोकनि एक ऊभड़-खाभड़ गली मे प्रवेश कैल । ओ बजलाह - आब आबि गेलहुं । कनेक बचा कऽ चलल जाय ।

हम टार्च लेसि कऽ देखल तऽ सामने नेव पड़ल छलैक । यदि एको डेग आगां बढ़ितहुं तऽ ओहि खाधि मे चलि जैतहुं ।

घरबैया बजलाह - मकान एखन बनिये रहल अछि । दू कोठरी पर छत पीटल छैक, दू टा पर बांकी छैक, भानस-घरक दीवार आधा तैयार भेल छैक और एहिठाम पैखानाक नेव देल गेल छैक ।

हम हुनका पाछां-पाछां खाधि कें टपैत, ईंट-सुर्खीक बीच दऽ कऽ बालु-चूनक ढ़ेरी बचबैत, ओहिठाम पहुंचलहुं जहां राज मिस्त्री बांस ठाढ़ कैने छल । वैह मचान मकानक प्रवेश द्वार छल । हमरा लोकनि बांस के तर माथ निहुरा भीतर कोठली मे ऐलहुं जाहि मे फर्श पीटक हेतु रोड़ा-गिट्टी बिछाओल छलैक । एकटा चौकी ओहि मे राखल छलैक ताहि पर ओछाओन ओछाओल छल । एक कोन मे लालटेन मद्धिम प्रकाश सँ जरि रहल छल ।

गृहपति अपना आदमी कें सोर कैलन्हि - रौ मलंगवा, पानि ला ।
मलंगवा एक बाल्टी पानि लऽ कऽ पहुंचल । चौधरीजी कहल्थिन्ह - रौ, लोटा आन, अढिया आन, अंगपोछा आन, पैर धोआ दहुन ।

मलंगवा दौड़ि कऽ लोटा अंगपोछा अनलक । चौधरीजी कहल्थिन्ह - रौ अढ़िया कतय छौक?

मलंगवा कहलकैन्ह - अढिया मे तऽ दालि चढ़ल छैक ।
चौधरी कहलथिन्ह - तखन एकटा थारिए लऽ आन । ई कुटुम्ब थिकाह । एतबो नहि बुझैत छहीक ।

हुनकर इशारा पबतहि मलंगबा हमरा हाथ सँ लोटा छीनि लेलक । ओकरा सरो खेलाएल देह छलैक । तेहन झटका सँ हमर एकटा पैर खीचि कऽ उठौलक जे हम तलमलाइत-तलमलाइत खसय लगलहुँ । परन्तु लग मे पाया छलैक, ताहि सँ बाँचि गेलहुँ । मलंगवा हमर तरवा तेना रगड़ऽ लागल जेना सईस घोड़ा कें रगड़ैत अछि । हमरा शरीरक सन्तुलन राखब कठिन भऽ रहल छल । परन्तु ओहि हरमुथ कें तकर कोन परबाहि? ओ बहुत दिन पर मौका पाबि अपन कलाक प्रदर्शन कऽ रहल छल ।

प्राय: दस मिनट मे जखन ओकरा सँ छुटकारा भेटल तखन हम कान पर जनौ चढ़ा लोटा हाथ मे लेल । चौधरी जी बजलाह - पैखाना एखन नहि बनलैक अछि । ता ओहि पजेबाक ढ़ेरी लग एकटा टाट ठाढ़ करबा देलिऐक अछि । रौ मलंगबा! लोटा लऽ जाहुन ।

मलंगबा फेर हमरा हाथ सँ लोटा छिनलक आ टटघरा लग हमरा पहुंचा कऽ फिरि आयल । हम अन्हार मे टॉर्च लऽ कऽ देखलिऐक तँ दूटा ईंट बैसाओल रहैक । तकरा बीच मे प्राय: केओ खूब पाकल कटहर खा कऽ नदी फिरने रहए । तेहन कुम्भीपाक भभकैत छल जे नाक देब कठिन । परन्तु एहना स्थिति मे दोसर साध्ये की छल। लोटा रखबाक स्थाने नहि भेटल । हाथ मे रखने रहलहुं । ता अन्धकार मे टाटक बीच मे किछु चमकि उठलैक । टॉर्च लऽ कऽ देखैत छी तँ एकटा जुआएल गहुमन मुंह बौने तकैत अछि । हम टॉर्च लोटा नेनेहि पड़ेलहुँ ।

ओम्हर खबास साबुन-तौलिया नेने ठाढ़ छल । समाचार सुनि बाजल - एहिठाम पजेबाक ढ़ेरी मे साँप सहसह करैत छैक । एहू कोठरी मे काल्हिए राति डेढ़ हाथक केंचुआ बहराएल रहैक ।

आब सिवाय इष्ट देवता कें स्मरण करबाक उपाये की छल?
हम एहिगुन-धुन मे चौकी पर पड़ल छलहुँ कि दोसरा कोठरी सँ शब्द सुनाई पड़ल - भात, दालि, आलूक तरकारी, परोरक भुजिया आर आमक चटनी भेल अछि ।

अरे एतबा तऽ सब दिने होइत अछि । ई कुटुम्ब देवता ने आबि गेल छथि ।
-तखन तिलौरी सेहो छान्हि दैत छिऐन्ह ।
- कम-स-कम सात टा तरकारी होमय चाहिऐन्ह? दू-तीन प्रकारक तरूओ कऽ दिऔन्ह । 
-तखन भँटा, कदीमा ओ तिलकोर तरि दैत छिएन्ह । सात टा पुरि जेतैन्ह ।
-एक बाटी मे घृत देबैन्ह । एकटा मे दही । एकटा मे खोआ । दालिक बाटी लगा कऽ एगारह टा पुरि जेतैन्ह ।
एतेक बाटी कहाँ सँ आओत? घर मे तऽ चारिए टा अछि ।
-सात टा बाटी मेस सँ मंगबा लिय ।
-मेस तऽ आब बन्द भऽ गेल हेतैक ।
-तखन मलंगबा के पठबिऔक । शीतल झा कें उठा देतैन्ह हमर नाम कहतैन्ह । ओम्हरे हलुआइक दोकान सँ दही मधुर सेहो नेने आओत । पान सेहो मंगा लिय । खोआक हेतु कम सँ कम एक सेर दूध कतहु सँ ऊपर करय पड़त ।
-एतेक राति कऽ दूध कतय भेटत?
-कुटुम्ब वाली बात । एक रातिक हेतु ऐलाह अछि । खोआ नहि हेतैन्ह तऽ मन मे की कहताह । एक बात करू । मलंगबा के कहियौ जे मोटकी मोदियाइनवालीक गाय कें दूहि कऽ नेने आओत । जतबे होइक ।
-परन्तु ओ तऽ मरखाहि छैक । लथार मारतैक ।

से जे हो । ई गुड़ खैने कान छेदेने । मर्यादाक पालन तँ करहि पड़त । हम अपनै जा रहल छी ।

ई वार्तालाप सुनितहि हमरा आकाशक तारा सूझय लागल । साहस पूर्वक सोर कलिऐन्ह - चौधरीजी कनेक सूनल जाओ ।

चौधरी जी आबि कऽ उचिती करय लगलाह । अपनेक भोजन मे किंचित विलम्ब भेल । कारण जे आइ अपन गाय पिया गेलैक । दोसर ठाम सँ दूधक प्रबन्ध भऽ रहल अछि ।

हम कहलिऐन्ह - दूध छोड़ि देल जाओ । हमरा पचितो नहि अछि ।
ओ बजलाह - भला कहू तऽ । ई किन्नहु भऽ सकै अछि? अपने एक दिनक हेतु संयोग सँ आबि गेल छी ।

हम प्रार्थना कैलिऐन्ह - हमरा आमाशय उखड़ल छल । दूध अपकार करत ।
ओ बजलाह - एके रती खोआ मुंह मे दऽ देबैक । विधि भऽ जेतैक । फेर अपने कहिया भेटब । 

ई कहैत ओ तेजी सँ बहरा गेलाह ।

हम मन मे कहल - आइए सभटा विधि पुरा लियऽ । कनेको कसरि नहि राखू । फेर के जाने कहिया अवसर भेटय ।

घड़ी मे देखल एगारह बाजि रहल छल । हम मन मारि कऽ पड़ि रहलहुं ।
जखन निसभेर सूतल रही तखन चौधरी जी आबि कऽ उठौलन्हि - उठल जाओ भोजन प्रस्तुत अछि ।

हम आँखि मिड़ैत उठलहुं । घड़ीक दुनू सूई एक पर रहय । पैर धोबय गेलहुं तँ चौधरी जी अपने हाथ मे लोटा नेने ठाढ़ । हमरा किन्नहु अपना हाथे पानि ढ़ारय नहि देलन्हि । हमरा आसन पर बैसाय अपने पंखा लऽ कऽ बैसलाह । हम कहलिऐन्ह - अपनहुं संग देल जाय ।

ओ बजलाह _ हम पाछाँ कऽ भोजन करब ।
हम देखल, बेस आडम्बरपूर्वक सचार लागल अछि । एगारह टा बाटी । बड़का थार मे डेढ़ सेर चाउरक भात परसल अछि ।

हम निवेदन कैलिएन्ह - हम एकर चतुर्थांशो नहि खा सकब । एकटा बासन मंगाओल जाय । हम अपना योग्य राखि बांकी बाहर कऽ देबैक ।

परन्तु ओ कथमपि राजी नहि भेलाह । बजलाह - इ तऽ परदेश मे किछुटा नहि भऽ सकल । घर रहितय तऽ अलबत्त किछु ओरिआन होइत । यदि एहू मे अपने छोड़ि देबैक तऽ हमर अभाग्य । 

एहना स्थिति मे की कैल जाय? हमरा जतबा सक्क लागल ततबा भोजन कय चूर लेबय लगलहुं । तावत्‌ ओ कसि कऽ हमर हाथ धऽ लेलैन्ह - की करै छिऐक अपने? एखन तऽ केवल नेवेद टा खोंटल भेल अछि । अपने भोजन कहाँ कैल अछि । सभटा तं पड़ले अछि । और भात सनियौक । अन्न महंग छैक । एना दूरि नहि करियौक ।

जे बात हमरा कहक चाही से वैह कहि देलन्हि । आब हम की करू । हम कनेक भात और दही सनलहुं । ओ बजलाह - दही नहि छोड़बाक चाही सभटा सनियौक ।

हम कोनो-कोनो तरहें ओतबा दही के सधाओल । याबत हम पानि पिबय लगलहुं तावत ओ बाघ जकाँ झपटि कऽ ओतबा दही और हमरा आगाँ मे उझीलि देलन्हि ।

हमरा आँखिक आगाँ अन्हार भऽ गेल । ई सहज मे पिंड छोड़यवला व्यक्ति नहि छथि । हम कलपैत स्वर सँ कहलिऐन्ह - आब नहि चलैत अछि । क्षमा कैल जाओ ।

ओ सरोष बजलाह - एहनो कतहु क्षमा होइ? दही तऽ पाचक होइत अछि ।
हम सभय कहलिऐन्ह - कनेक नोन मँगा दियऽ ।

ओ बजलाह - भला कहू तँ घर मे चीनी नहि छैक ? हौ चीनी दहुन ।

हुनक आज्ञाकारी भनसीया एक लप चीनी दही पर उझीलि देलन्हि । हमरा हक्क-बक्क किछु नै फुरय जे की करी । परन्तु देखल जे बिना खैने उपाय नहि । तीन-तीन गोटा ठाढ़ छथि । एहना स्थिति मे उठि कऽ पड़ाएब संभव नहि । अगत्या आंगुर मे दही लगा कऽ चाटय लगलहुं ।

चौधरी बजलाह - ओना मधुपर्क की करै छी? सपासप खैयौक ।
हम जान अवधारि कऽ कोनहुना सभटा दही उदरस्थ कय जहिना उठय चाहै छी की घरबैया धैलन्हि हमर गट्टा - ओतेक परिश्रम सँ खोआ बनल अछि से अपने छुइबोटा नहि कैलिऐक ।

हमर प्राण कंठगत होमय लागय । आब हम खोआ की खायब? खोए हमरा खा जायत ।

परंच ओ टस सँ मस नहि भेलाह । बजलाह - मावाक कतहु अनादर कैल जाय । ई सभटा खाय पड़त ।

ई कहि खोआक बट्टा ओ हमरा थारी मे उलटा देलन्हि । हमरा मन मे आएल जे आब भोकारी पारि कऽ कानी । परन्तु के सुनैये । घरवैयाक एहन सभ क्रम जे ओना नहि खायब तऽ जबर्दस्ती कांरी लगा कऽ खोआएल जाएत । आखिर कुटुम्ब छी की ठट्ठा?

हम बलिदानक बकरा जकां बाध्य भऽ खोआ मुँह मे देबए लगलहुँ । प्रत्येक कौर मे बुझि पड़य जे आब वान्ति भऽ जायत आब वान्ति भऽ जायत ।

तावत्‌ गृहपति एक थारी मधुर आनि हमरा आगां मे समापयेत । एक्केटा रसगुल्ला बमगोलाक काज करत । ई तऽ आठ अछि । आइ हमर अर्थीए एहि नवका मकान सँ उठत ।

हम भगवान कें गोहराबय लगलहुं । ता एकटा युक्ति फुरि गेल । हम बजलहुं - यदि घर मे कोनो पाचक हो तं....।

एतबा सुनतहि तीन गोटा दौड़ि कऽ भंडार दिस गेलाह । तावत्‌ हम सभटा रसगुल्ला चुपचाप खिड़कीक बाटे बाहर फेंकि देलौं ।

गृहपति लवणभास्कर लऽ कऽ ऐलाह तऽ मधु के नि:शेष देखि सन्तोषक स्वास छोड़लन्हि । बजलाह - लियऽ, आब एहि जोर पर थोड़ेक आम कटहर सेहो भऽ जाय । हौ, कहाँ गेलह?

परन्तु यावत्‌ और यमदूत सभ आबय-आबय ता हम हाथ-पैर झारि उठि गेल छलहुँ । अस्तु । गृहपति हमरा सुतबाक प्रबन्ध कऽ स्वयं भोजन करय गेलाह ।

हमर जी अकसक रहय । बड़ी काल धरि कच्छमच्छ करैत रहलहुं । बाह्यभूमि दिस जैबाक वेग बुझि पड़य, परन्तु सर्प भय सँ बहरेबाक साहस नहि पड़ल । अन्न पचावक हेतु कोठरी मे एम्हर सँ ओम्हर टहलय लहलहुँ । दू चारि बेर लवण भास्कर खा कऽ पानि पिलहुं । ई सब करैत धरैत अढ़ाय बाजि गेल । तखन जा कय आँखि लागल । जखन एक निन्न सूति कऽ उठलहुं तऽ देखैत छी जे साढे चारि बाजि रहल अछि ।

केवल आध घंटा ट्रेन मे देरी अछि और स्टेशन दूर । आब जल्दी विदा हैबाक चाही ।

परन्तु मकान मे ककरो आहटि नहि बुझि पड़ल । हम गर्द कैल - चौधरीजी ! बाबाजी! मलंगवा! परन्तु कोनो उत्तर नहि भेटल । हम चारू कात खोजि कऽ देखल । ककरो पता नहि ।

अगत्या रिक्षाक खोज मे विदा भेलहुँ । परन्तु ओहिठाम एकोटा रिक्शा, टमटम वा कूली नहि भेटल । खाली रहितहुं तऽ पैदलो झटकि कऽ चलि जैतहुँ । परन्तु एतबा समान लऽ कऽ एतेक दूर कोना जाइ?

हम एहि पशोपेश मे पड़ल छलहुँ कि बाबाजी देखाइ पड़लाह । हाथ मे चायक पुड़िया - की औ बाबाजी?

ओ बजलाह - मालिक कहलन्हि जे बिना चाह पिऔने नहि जाय देबैन्ह । तें आँच जोड़य जा रहल छी ।

हम कहलिऐन्ह - हमरा ट्रेन पकड़बाक अछि । जल्दी सँ रिक्शा आनि दियऽ ।
ओ बजलाह - एहिठाम लग मे सवारी नहि भेटत ।
हम कहलिऐन्ह - मलंगवा कतय अछि । ओकरे कहियौक पहुँचा देत ।
ओ बजलाह - ओ दूध लाबऽ गेल अछि । अहींक चाह खातिर ।
हम पुछ्लिऐन्ह - एहिठाम कुली भेटत ।

ओ बजलाह - एखन एकोटा नहि भेटत । छौ बजे जन-मजदूर अबै अछि । तखन जतेक चाही ।
हम पुछलिऐन्ह - मालिक कहाँ छथि?
ओ बजलाह - अहींक खातिर इंजीनियर साहब सँ मोटर मँगनी करय गेल छथि ।
आब एहना स्थिति मे हम की करू । चुपचाप ठाढ़ भऽ कऽ घड़ीक प्रगति देखय लगलहुँ । मिनटवला सूई क्रमश: आठ पर आबि गेल । आब केवल २० मिनट समय अछि । ई गाड़ी छूटि जायत तऽ फेर १२ बजे धरि कोनो ट्रेन नहि । तखन तऽ सभाक समय धरि पूर्णियाँ पहुँचियो नहि सकब ।

यैह सोचैत छलहुँ कि मलंगवा दूध लऽ कऽ अबैत दृष्टिगोचर भेल । हम कहलिऐक - हौ, स्टेशन पहुँचा दैह ।

ओ बाजल - मालिक हवागाड़ी लऽ कऽ अबैत हैताह । वैह स्टेशन पहुँचा देताह ।

पौने पाँच बजे चौधरीजी मोटर नेने पहुँचलाह । हमरा कतहुँ सँ जी मे जी आयल । हम मलंगवा के कहलिऐ - सामान लाद ।

चौधरीजी बजलाह - अपने स्थिर रहू । एखन १५ मिनट देरी छैक ५ मिनट मे पहुंचि जाएब । ताबत्‌ चाह पीबि लिय । गाड़ी पकड़ैबाक भार हमरा ऊपर ।

हमर इच्छा नहियो रहैत हुनका डरें जल्दी-जल्दी तपते चाय घोंटऽ लगलहुँ । परन्तु ओ अभ्यस्त भऽ फूकि-फूकि कऽ चुसकी लेबय लगलाह । तखन निश्चिन्ततापूर्वक मलंगवा कें सामान लादक आदेश देलथिन्ह । ओहो कोबरक वर जकां नहूँ-नहूँ डेग दैत चलल ।

एहन दीर्घसूत्रता देखि मनेमन तऽ बहुत क्रोध भेल । किन्तु बाजू की? चौधरीजी के कहलिऐन्ह - हम बड़ी काल सँ तैयार छी ।

ओ बजलाह - एहिठाम सँ दू डेग स्टेशन । हम सभ तऽ दिन मे चारि बेर भऽ अबैत छी । परन्तु अपने राति एतबे दूर मे थाकि गेलहुँ । तें हम अनरोखे उठि गाड़ीक बन्दोबस्त मे निकलि गेलहुँ ।

हम कहलिऐन्ह - कोन काज छलैक? हम रिक्शा सँ चलि जैतहुँ ।
ओ बजलाह - भला कहू तऽ? तखन दोस्तक गाड़ी रहने कोन फल? आब एहि सँ विशेष पाहुन के भेटताह ।

जखन मोटर स्टार्ट भेल तऽ पाँच बजबा मे केवल पांच मिनट बाँकी छलैक । हमर उद्विग्नता देखि चौधरीजी बजलाह - अपने कोनो चिन्ता नहि करू । यदि कटिहार स्टेशन मे गाड़ी छूटि जाएत तऽ हम सात वर्ष सऽ एहिठाम ठीकेदारी किऐक करैत छी?

हम घड़ी दिस ताकब छोड़ि देल । जा कटिहार स्टेशन पर मोटर पहुंचय-पहुंचय ता ट्रेन फक-फक धुआँ छोड़ैत प्लेटफार्म के पार कए चुकल छल ।

चौधरीजी बजलाह - जाह! केवल दू मिनट सँ गाड़ी महारानी छूटि गेलीह । स्टेशन पर धरितिऐन्ह तऽ देखितिऐन्ह जे कोना छूटै छथि ।

आब एहि पर हम की टीका-टिप्पणी करू? कुली के कहलिऐक वेटिंग रूम ले चलो ।

चौधरी बजलाह - आब तऽ १२ बजे सँ पहिने अपने कें ट्रेन नहिए भेटत । एतबा काल स्टेशन पर बैसि कऽ की करब? चलल जाओ, ओहिठाम स्नान, भोजन, विश्राम कय बरहबज्जी ट्रेन सँ विदा भऽ जाएब ।

पुन: कुली कें डटैत कहलथिन्ह - रौ फेर सामान मोटर मे धर ।

आब हमरा नहि रहि भेल । चौधरीजीक चरण पर खसैत कहलिऐन्ह आब हमरा पर दया कैल जाओ । हमर जान बकसि देल जाओ । अपने हमरा हेतु बड़ कष्ट उठाओल । हम कृतज्ञता भार सँ दबि गेल छी । आब और भार पड़त तऽ पिचा कऽ मरि जाएब ।

एतबा कहैत-कहैत हमरा आंखि मे नोर भरि आयल । चौधरीजी एक क्षण क्षुब्ध रहलाह । पुन: विरक्तिपूर्ण दृष्टि सँ हमरा दिस तकैत बजलाह - बेस, तऽ जाउ । हम संबंधी जानि अहां पर जे अपन अधिकार बूझल से अनर्गल कैल ।

ई कहि ओ बिना नमस्कारे कैने मोटर पर बैसलाह और फुर्र दऽ विदा भऽ गेलाह ।

हम किछु काल किंकर्त्तव्यविमूढ़ भऽ वेटिंगरूम मे बैसल रहलहुँ । तदुपरांत ई कथा लिखय लगलहुं ।

एखन दस बजे वेटिंगरूम मे ई कथा समाप्त कय हम सोचि रहल छी जे चौधरीजी कें हमरा लऽ गेने कोन लाभ भेलैन्ह? और हमरे कोन लाभ भेल? उभय पक्ष के नितान्त कष्ट ओ असुविधा । अन्त मे संबंध सेहो टूटि गेल । एहि सँ कतहुं नीक होइत जे राति मे एतहि वेटिंगरूम मे खा पी कऽ आराम सँ सुतितहुं । हमरो सुविधा होइत, हुनको तरद्दुत नहि करय पड़ितन्हि । सामंजस्य सेहो कायम रहैत । ककरो कष्ट नहि होइतैक । सर्वोदयवला सिद्धांत चरितार्थ होइत । परन्तु ‘आचार’ मे ‘अति’ लागि गेने ‘अत्याचार’ बनि गेल । ताहि द्वारे हमरो कानय पड़ल आ हुनको कानहि पड़ल हेतैन्ह ।

हम पुछै छी, एहन तिरहुताम सँ कोन फल?
1. दही चूडा चीनी                                      हरिमोहन झा
दही चूड़ा चीनी
खट्टर कका दलान पर बैसल भाङ घाटैत छलाह । हमरा अबैत देखि बजलाह— हाँ...हाँ....ओम्हर मरचाइ रोपल छैक, घूमि कऽ आबह ।
हम कहलिऐन्ह।— खट्टर कका, आइ जयवारी भोज छैक, सैह सूचित करय आयल छी ।
खट्टर कका पुलकित होइत बजलाह...बाह बाह ! तखन सोझे चलि आबह । दु एकटा धङ्घेबे करतैक त की हैतैक ? ...हँ, भोजमे हैतैक की सभ ?
हम—दही चूडा चीनी ।
खट्टर कका— बस, बस, बस । सृष्टिगमे सभ सँ उत्कृ ष्टू पदार्थ यैह थीक । गोरसमे सभ सँ माँगलिक वस्तु— दही, अन्न मे सभक चूडामणि—चूडा, मधुरमे सभक मूल—चीनी । एहि तीनूक सँयोग बूझह तै त्रिवेणी—सँगम थीक । हमरा त त्रिलोकक आनन्दभ एहिमे बूझि पडैत अछि । चूडा...भूलोक, दही...भुवर्लोक, आ चीनी...स्वकर्लोक ।
हम देखल जे खट्टर कका एखन तरंगमे छथि । सभटा अद्भुते बजताह । अतएव काज अछैतो गप्पज सुनबाक लोभें बैसि गेलहुँ ।
खट्टर कका बजलाह— हम त बु झै छी जे एही भोजन सँ साँख्यक दर्शनक उत्पत्ति भेल अछि ।
हम चकित होइत पुछलिऐन्हु—ऐं ! दही चूडा चीनीसँ साँख्य दर्शन ! से कोना ?
खट्टर कका बजलाह...एखन कोनो हडबडी त ने छौह ? तखन बैसि जाह । हमर विश्वास अछि कपिल मुनि दही चूडा चीनीक अनुभव पर तीनू गुणक वर्णन कऽ गेल छथि । दही...सत्वकगुण, चूडा...तमोगुण, चीनी...रजोगुण ।
हम कहलियन्हि—खट्टर कका, अहाँक त सभटा कथा अद्भुते होइत अछि । ई हम कतह नहि सुनने छलहुँ ।
खट्टर कका बजलाह— हमर कोन बात एहन होइ अछि ने तों आनठाम सुनि सकबह ?
हम— खट्टर कका, त्रिगुणक अर्थ दही चूडा चीनी, से कोना बहार कैलियैक ?
खट्टर कका—देखह, असल तत्व दहिएमे रहैत छैक, तैं एकर नाम सत्व । चीनी गर्दा होइछ, तैं रज । चूडा रुक्षतम होइछ, तैं तम । देखै छह नहि, अपना देशमे एखन धरि “तमहा” चूडा शब्द प्रचलित अछि ।
हम—आश्चर्य ! एहि दिस हमर ध्यान नहि गेल छल ।
खट्टर कका व्याख्या करैत बजलाह—देखह, तमक अर्थ छैक अन्धकार । तैं छुच्छ चूडा पात पर रहने आँखिक आगाँ अन्हार भऽ जाइ छैक । जखन उज्जर दही ओहि पर पडि जाइ छैक तखन प्रकाशक उदय होइ छैक । तैं सत्व गुण कें प्रकाशक कहल गेलैक अछि । “सत्वं लघु प्रकाशकमिष्टम्” । तैं दही लघुपाकी तथा सभ कैं इष्टओ (प्रियगर) होइत अछि । चूडा कोष्ठघ कैं बान्हि् दैत छैक । तैं तम कैं अवरोधक कहल गेल छैक । और बिना रजोगुणे त क्रियाक प्रवर्तन हो नहि । तैं चीनीक योग बेत्रेक खाली चूडा दही नहि घोंटा सकैत छैक । आब बुझलहक ?
हम कहलिऐन्ह — धन्य छी खट्टर कका । अहाँ जे ने सिद्ध कऽ दी !
खट्टर कका बजलाह—देखह, साँख्यक मतसँ प्रथम विकार होइ छैक महत् वा बुद्धि । दहि चूडा चीनी खैला उत्तर पेटमे फूलि कय पसरैत छैक । यैह महत् अवस्था थिकैक । एहि अवस्थामे गप्प खूब फुरैत छैक । तैं महत् कहू वा बुद्धि...बात एक्के थिकैक । परन्तु एकरा हेतु सत्व गुणक आधिक्य होमक चाही अर्थात दही बेशी होमक चाही ।
हम—अहा ! साँख्य दर्शनक एहन तत्व् दोसर के कहि सकैत अछि ।
खट्टर कका बजलाह—यदि एहिना निमन्त्रण दैत रहह त क्रमशः सभ दर्शनक तत्व वुझा देवौह । त्रिगुणत्मिवका प्रकृति द्रष्टी पुरुष कैं रिझबैत छथि । एकर अर्थ जे ई त्रिगुणत्मवक भोजन भोक्ता पुरुष कैं नचवैत तथि । तैं—नृत्यकन्तिभोजनैर्विप्राः ।
हम कहलियन्हि—परन्तु् खट्टर कका ! पछिमाहा सभ त दही चूडा चीनी पर हँसैत छथि ।
खट्टर कका अङपोछा सँ भाँग छनैत बजलाह—हौ, सातु लिट्टी खैनिहार दधि—चिपटान्न क सौरभ की बुझताह ! पच्छिमक जेहन माटि बज्जर, तेहने अन्न बजरा, तेहने लोको बज्र सन । अपना देहक भूमि सरस, भोजन सरस, लोको सरस । चूडा पृथ्वी तत्वे...दही जल तत्व...चीनी अग्नि तत्व । तैं कफ पित्त वायु—तीनू दोष कैं शमन करबाक सामर्थ्य एहिमे छैक । देखह, अनादि काल सँ दही चूडा चीनीक सेवन करैत—करैत हमरा लोकनिक शोणित ठण्ढा भऽ गेल अछि । तैं मैथिल जाति कैं आइ धरि कहियो युद्ध करैत देखलहक अछि ? 
हम— खट्टर कका, कहाँ सँ कहाँ शह चला देलहुँ । बीच—बीचमे तेहन मार्मिक व्यंग्य कऽ दैत छिऐक जे...
खट्टर कका—व्यंग्य नहि, यथार्थे कहैत छिऔह । देखह, भोजने सँ प्रकृति बनैत छैक । चाली माटि खा कऽ माटि भेल रहैत अछि । साँप बसात पीवि कऽ फनकैत अछि । साहेब सभ डवल रोटी खा कऽ फूलल रहैत अछि । मुर्गा खैनिहार मुर्गा जकाँ लडैत अछि । और हम सभ साग—भाँटा खा कऽ साग—भाँटा भेल छी । हमरा लोकनि भक्त (भात)क प्रेमी थिकहुँ, तैं एक दोसरा सँ विभक्त रहैत छी । ताहु पर की त द्विदल (दालि)क योग भेले ताकय ! तखन एक दल भऽ कऽ कोना रहि सकैत छी ?
हम—अहा ! की अलंकारक छटा !
खट्टर कका—केवल अलँकारे नहि, विज्ञानो छैक । कोनो जातिक स्विभाव बुझबाक हो त देखी जे ओकर सभ सँ प्रिय भोजन की थिकैक ? देखह, बँगाली ओ पच्छाँ हीक स्वभावमे की अन्तर छैक ?...जैह भेद रसगुल्ला ओ लड्डुमे छैक । रसगुल्ला‍ सरस ओ कोमल होइछ, लड्डू शुष्क। ओ कठोर । रसगुल्लाल पूर्वक प्रतीक थीक, लड्डू पश्चिामक । तैं हम कहैत छिऔह जे ककरो जातीय चरित्र बुझवाक हो त ओकर प्रधान मधुर देखी ।
हम— खट्टर कका, अपना सभक प्रधान मधुर की थीक ?
खट्टर कका—अपना सभक प्रधान मधुर थीक खाजा । देहातमे मिठाइ कहने ओकरे बोध होइछ । खाजा ने रसगुल्ला जकाँ स्निग्ध होइछ, ने लड्डू जकाँ ठोस । तैं हमरा लोकनिमे ने बँगालीवला स्नेह अछि, ने पंजाबीवला दृढता ...तखन खाजामे प्रत्येक परत फराक—फराक रहैत छैक, से अपनो सभमे रहितहि अछि ।
हम—वाह ! ई त चमत्कािरक गप्प कहल ! मौलिक !
खट्टर कका—ऐंठ वा बासि बात हम बजितहिं ने छी ।
हम—वास्तवमे खट्टर कका ! अहाँ ठीक कहै छी । गाम—गाममे गोलैसी, घर—घरमे पट्टीदारी झगडा । कचहरीमे पागे पाग देखाइत अछि । से किऐक ?
खट्टर कका—एकर कारण जे हमरा लोकनि आमिल मरचाइ बेसी खाइत छी । तीख चोख भेले ताकय । तीतोमे कम रुचि नहि । नीम—भाँटा, करैल, पटुआक झोर... हौ, जैह गुण कारणमे हतैक सैह ने कार्यमे प्रकट हैतैक ! कटुता, अम्लता ओ तिक्ताता हमरा लोकनिक अंग बनि गेल अछि । स्वाइत हम सभ अपनामे एतेक कटाउझ करैत छी !
हम—परन्तु बंगाली सभमे एतेक प्रेम किऐक ?
खट्टर कका भाँगमे एक आँजुर चीनी मिलबैत बजलाह—ओ सभ प्रत्येक वस्तु मे मधुरक योग दैत छथि । दालिओ मीठ, तरकारिओ मीठ, माछो मीठ, चटनिओ मीठ ! तखन कोना ने माधुर्य रहतन्हि ? अपनो जातिमे एहिना मीठक व्युवहार होमऽ लागय तखन ने ! तैं हम कहैत छिऔह जे अपना जातिमे जौं सँगठन करबाक हो त मधुरक बेसी प्रचार करह । केवल सभा कैने की हैतौह ? —“भोज ने भात ने, हरहर गीत !“गाम सँ दुगोला दूर करबाक हो त “दही चूडा चीनी लवण कदली लड्डू बरफी”क भोज करह ।
ई कहि खट्टर कका भाङ्गक लोटा उठौलन्हि और दू—चारि बुँद शिवजीक नाम पर छीटि घट्टघट्ट कय सभटा पीबि गेलाह ।
पाँच पत्र-हरिमोहन झा                                                       पाँच पत्रएक
दड़िभङ्गा १-१-१९
प्रियतमे
अहाँक लिखल चारि पाँती चारि सएबेर पढ़लहुँ तथापि तृप्ति नहि भेल। आचार्यक परीक्षा समीप अछि किन्तु ग्रन्थमे कनेको चित्त नहि लगैत अछि। सदिखन अहींक मोहिनी मूर्ति आँखिमे नचैत रहैत अछि। राधा रानी मन होइत अछि जे अहाँक ग्राम वृन्दावन बनि जाइत, जाहिमे केवल अहाँ आ हम राधा-कृष्ण जकाँ अनन्त काल धरि विहार करैत रहितहुँ। परन्तु हमरा ओ अहाँक बीचमे भारी भदबा छथि। अहाँक बाप-पित्ती, जे दू मासक बाद फगुआमे हमरा आबक हेतु लिखैत छथि। साठि वर्षक बूढ़केँ की बूझि पड़तनि जे साठि दिनक विरह केहन होइत छैक !
प्राणेश्वरी, अहाँ एक बात करू माघी अमावस्यामे सूर्यग्रहण लगैत छैक। ताहिमे अपना माइक संग सिमरिया घाट आउ। हम ओहिठाम पहुँचि अहाँकें जोहि लेब। हँ एकटा गुप्त बात लिखैत छी जखन स्त्रीगण ग्रहण-स्नान करऽ चलि जएतीह तखन अहाँ कोनो लाथ कऽकऽ बासापर रहि जाएब। हमर एकटा संगी फोटो खिचऽ जनैत अछि। तकरासँ अहाँक फोटो खिचबाएब देखब ई बात केओ बूझए नहि। नहि तँ अहाँक बाप-पित्ती जेहन छथि से जानले अछि।
हृदयेश्वरी हम अहाँक फरमाइशी वस्तु –चन्द्रहार- कीनिकऽ रखने छी। सिमरियामे भेट भेलापर चूपचाप दऽ देब। मुदा केओ जानए नहि हमरा बापके पता लगतनि तँ खर्चा बन्द कऽ देताह। हँ एहि पत्रक जबाब फिरती डाकसँ देब। तें लिफाफक भीतर लिफाफ पठारहल छी। पत्रोत्तर पठएबामे एको दिनक विलम्ब नहि करब। हमरा एक-एक क्षण पहाड़सन बीतिरहल अछि। अहाँक प्रतीक्षा मे आतुर।
पुनश्च : चिट्ठी दोसराके छोड़क हेतु नहि देबैक। अपने हाथसँ लगाएब रतिगरे आँचरमे नुकौने जाएब आओर जखन केओ नहि रहैक तँ लेटरबक्समे खसा देबैक। 
दू
हथुआ संस्कृत विद्यालय १-१-२९
प्रिय,
बहुत दिनपर अहाँक पत्र पाबि आनन्द भेल। अहाँ लिखैत छी जे ननकिरबी आब तुसारी पूजत, से हम एकटा अठहत्थी नूआ शीघ्र पठा देबैक। बंगट आब स्कूल जाइत अछि कि नहि? बदमाशी तँ नहि करैत अछि? अहाँ लिखैत छी जे छोटकी बच्चीके दाँत उठि रहल छैक, से ओकर दबाइ वैद्यजीसँ मङबाकऽ दऽ देबैक। अहूके एहिबेर गामपर बहुत दुर्बल देखलहुँ जीरकादि पाक बनाकऽ सेवन करू। जड़कालामे देह नहि जुटत तँ दिन-दिन ह्रस्त भेल जाएब। ओहिठाम दूध उठौना करू। कमसँ कम पाओभरि नित्य पिउल करब। 
हम किछु दिनक हेतु अहाँकें एहिठाम मङा लितहुँ। परन्तु एहिठाम डेराक बड्ड असौकर्य। दोसर जे विद्यालयसँ कुल मिला साठि टका मात्र भेटैत अछि। ताहिमे एहिठाम पाँचगोटाक निर्वाह हएब कठिन। तेसर ई जे फेर बूढ़ीलग के रहतनि ! इएहसभ विचारिकऽ रहि जाइत छी। नहि तँ अहाँक एतऽ रहने हमरो नीक होइत। दुनू साँझ समयपर सिद्ध भोजन भेटैत बंगटो के पढ़बाक सुभीता होइतैक। छोटकी कनकिरबीसँ मन सेहो बहटैत। परन्तु कएल की जाए ! बड़की ननकिरबी किछु आओर छेटगर भऽ जाए तँ ओकरा बूढ़ीक परिचर्यामे राखि किछु दिनक हेतु अहाँ एतऽ आबि सकैत छी। परन्तु एखन तँ घर छोड़ब अहाँक हेतु सम्भव नहि। हम फगुआक छुट्टीमे गाम अएबाक यत्न करब। यदि नहि आबि सकब तँ मनीआर्डर द्वारा रुपैया पठा देब।
अहींक कृष्ण
पुनश्च : चिट्ठी दोसराकें छोड़क हेतु नहि देबैक अपने हाथसँ लगाएब। रतिगरे आँचरमे नुकौने जाएब आओर जखन केओ नहि रहैक तँ लेटरबक्समे खसा देबैक।


तीन

हथुआ संस्कृत विद्यालय १-१-३९
शुभाशीर्वाद 

अहाँक चिट्ठी पाबि हम अथाह चिन्तामे पड़ि गेलहुँ। एहिबेर धान नहि भेल तखन सालभरि कोना चलत। माएक श्राद्धमे पाँच सए कर्ज भेल तकर सूदि दिन-दिन बढ़ले जा रहल अछि। दू मासमे बंगटक इमतिहान हएतनि। करीब पचासो टका फीस लगतनि। जँ कदाचित पास कऽ गेलाह तँ पुस्तकोमे पचास टका लागिए जएतनि। हम ताही चिन्तामे पड़ल छी। एहिठाम एक मासक अगाउ दरमाहा लऽ लेने छियैक। तथापि उपरसँ नब्बे टका हथपैंच भऽ गेल अछि। एहना हालतिमे हम ६२ टका मालगुजारी हेतु कहाँसँ पठाउ? जँ भऽ सकए तँ तमाकू बेचिकऽ पछिला बकाया अदाय कऽ देबैक। भोलबा जे खेत बटाइ कएने अछि, ताहिमे एहिबेर केहन रब्बी छैक? कोठीमे एको मासक योगर चाउर नहि अछि। ताहिपर लिखैत छी जे ननकिरबी सासुरसँ दू मासक खातिर आबऽ चाहैत अछि। ई जानि हम किंकर्तव्यविमूढ़ भऽ गेल छी। ओ चिल्हकाउर अछि। दूटा नेना छैक। सभकेँ डेबब अहाँक बुते पार लागत? आब छोटकी बच्ची सेहो १० वर्षक भेल। तकर कन्यादानक चिन्ता अछि। भरि-भरि राति इएहसभ सोचैत रहैत छी, परन्तु अपन साध्ये की? देखा चाही भगवान कोन तरहें पार लगबै छथि!
शुभाभिलाषी
देवकृष्ण
पुनश्च : जारनि निंघटि गेल अछि तँ उतरबरिया हत्ताक सीसो पंगबा लेब। हम किछु दिनक हेतु गाम अबितहुँ किन्तु जखन महिसिए बिसुकि गेल अछि तखन आबिकऽ की करब?
अहाँक देवकृष्ण


चारि
हथुआ संस्कृत विद्यालय १-१-४९
आशीर्वाद
हम दू माससँ बड्ड जोर दुखित छलहुँ तें चिट्ठी नहि दऽ सकलहुँ। अहाँ लिखैत छी जे बंगट बहुकें लऽकऽ कलकत्ता गेलाह। से आइकाल्हिक बेटा-पुतहु जेहन नालायक होइत छैक से तँ जानले अछि। हम हुनकाखातिर की-की नहि कएल! कोन तरहें बी।ए। पास करौलियनि से हमहीं जनैत छी। तकर आब प्रतिफल दऽरहल छथि। हम तँ ओही दिन हुनक आस छोड़ल, जहिया ओ हमरा जिबिते मोछ छँटाबऽ लगलाह। सासुक कहबमे पड़ि गोरलग्गीक रुपैया हमरालोकनिकेँ देखहु नहि देलनि। जँ जनितहुँ जे कनियाँ अबितहि एना करतीह तँ हम कथमपि दक्षिणभर विवाह नहि करबितियनि। १५०० गनाकऽ हम पाप कएल, तकर फल भोगिरहल छी। ओहिमेसँ आब पन्द्रहोटा कैँचा नहि रहल। तथापि बेटा बूझैत छथि जे बाबूजी तमघैल गाड़नहि छथि। ओ आब किछुटा नहि देताह आर ने पुतहु अहाँक कहलमे रहतीह। हुनका उचित छलनि जे अहाँक संग रहि भानस-भात करितथि, सेवा-शुश्रुषा करितथि। परञ्च ओ अहाँक इच्छाक विरुद्ध बंगटक संग लागलि कलकत्ता गेलीह। ओहिठाम बंगटकें १५० मे अपने खर्च चलब मोश्किल छनि कनियाँकें कहाँसँ खुऔथिन। जे हमरालोकनि ३० वर्षमे नहि कएल से ईलोकनि द्विरागमनसँ ३ मासक भीतर कऽ देखौलनि। अस्तु। की करब? एखन गदह-पचीसी छनि। जखन लोक होएताह तखन अपने सभटा सुझतनि। भगवान सुमति देथुन। विशेष की लिखू? कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति।
देवकृष्ण
पुनश्च: जँ खर्चक तकलीफ हो तँ छओ कट्ठा डीह जे अहाँक नामपर अछि से भरना धऽकऽ काज चलाएब। अहाँक हार जे बन्धक पड़ल अछि से जहिया भगवानक कृपा होएतनि तहिया छुटबे करत!
पाँच
काशीतः
१-१-५९
स्वस्ति श्री बंगटबाबूकें हमर शुभाशिषः सन्तु।
अत्र कुशलं तत्रास्तु। आगाँ सुरति जे एहि जाड़मे हमर दम्मा पुनः उखरि गेल अछि। राति-रातिभरि बैसिकऽ उकासी करैत रहैत छी। आब काशी-विश्वनाथ कहिया उठबैत छथि से नहि जानि। संग्रहणी सेहो नहि छूटैत अछि। आब हमरालोकनिक दबाइए की? औषधं जाह्नवी तोयं वैद्यो नारायणो हरिः। एहिठाम सत्यदेव हमर बड्ड सेवा करैत छथि। अहाँक माएकें बातरस धएने छनि से जानिकऽ दुःख भेल परन्तु आब उपाये की? वृद्धावस्थाक कष्ट तँ भोगनहि कुशल! बूढ़ीकें चलि-फीरि होइत छनि कि नहि? हम आबिकऽ देखितियनि, परञ्च अएबा जएबामे तीस चालीस टका खर्च भऽ जाएत दोसर जे आब हमरो यात्रा मे परम क्लेश होइत अछि। अहाँ लिखैत छी जे ओहो काशीवास करऽ चाहैत छथि। परन्तु एहिठाम बूढ़ीके बड्ड तकलीफ होएतनि। अपन परिचर्या करबा योग्य त छथिए नहि, हमर सेवा की करतीह? दोसर जे जखन अहाँ लोकनि सन सुयोग्य बेटा-पुतहु छथिन तखन घर छोड़ि एतऽ की करऽ औतीह? मन चंगा तँ कठौतीमे गंगा! ओहिठाम पोता-पोतीके देखैत रहैत छथि। पौत्रसभके देखबाक हेतु हमरो मन लागल रहैत अछि। परञ्च साध्य की? उपनयनधरि जीबैत रहब तँ आबिकऽ आशीर्वाद देबनि। अहाँक पठाओल ३० टका पहुँचल एहिसँ च्यवनप्राश कीनिकऽ खा-रहल छी। भगवान अहाँके निकें राखथु। चि। पुतहुके हमर शुभाशीर्वाद कहि देबनि। ओ गृहलक्ष्मी थिकीह। अहाँक माए जे हुनकासँ झगड़ा करैत छथिन से परम अनर्गल करैत छथि। परन्तु अहाँकेँ तँ बूढ़ीक स्वभाव जानले अछि। ओ भरिजन्म हमरा दुखे दैत रहलीह। अस्तु कुमाता जायेत क्वचिदपि कुपुत्रो न भवति, एहि उक्ति के अहाँ चरितार्थ करब।
इति देवकृष्णस्य
पुनश्च : यदि कोनो दिन बूढ़ीके किछु भऽ जाइन तँ अहाँलोकनिक बदौलति सद् गति होएबे करतनि जाहि दिन ई सौभाग्य होइन ताहि दिन एक काठी हमरोदिस सँ धऽ देबनि