www.HeeraJha.weebly.com

Welcome

मिथिला : एक परिचय

Picture
मिथिला प्राचीन भारत मे एकटा साम्राज्य छल । ई पूर्वी गंगा मैदान मे अवस्थित अछि , जे आब आधा सँ अधिक बिहार और ओकरा सँ जुड़ल नेपालक भाग अछि । रामायण महाकाव्यक अनुसार मिथिला विदेह साम्राज्यक राजधानी छल । एहि शहरक पहचान नेपालक धनुषा जिला मे आजुक जनकपुर सँ कएल गेल अछि । विदेहक देश कखनो-कखनो मिथिला कहल जाईत अछि, जहन कि ई राजधानी छल । ई ठीक ओहिना अछि जेना कि कोशल साम्राज्यक राजधानी अयोध्या छल, जे कोशलक तुलना मे बेसी प्रसिद्ध भेल । 

डी. डी. कोशाम्बीक अनुसार शतपथ ब्राह्मण कहैत अछि कि माधब विदेघ पर पुजारी गोतम राहुगण शासन केलनि, जे पहिल राजा छलाह, जे सदानीरा (संभवत: गंडक ) नदी कें पार कऽ साम्राज्यक स्थापना कयलनि । एतयक लोक शतपथ ब्राहमणक संकलनक समय मे विदेहक नाम सँ जानल जाईत छलाह । गोतम राहुगण एकटा वैदिक ऋषि छलाह जे ऋग्वेदक पहिल मंडलक कतेको श्लोकक रचना कयलनि । ई श्लोक ओ अछि, जहि मे स्व- राज्यक प्रंशसा कयल गेल अछि, जे निर्विवाद रूप सँ विदेघ राज्य छल जे ध्वनि परिवर्तनक कारण बाद मे विदेह भऽ गेल । अत: माधव विदेघ निश्‍चित रूप सँ बहुत पहिने भऽ चुकल छलाह । ऋग्वेदक दशम मंडल मे काशिराज प्रातर्दन द्वारा रचित श्‍लोकक उल्लेख अछि । अत: मिथिला आ काशी ओहि भूभाग मे अवस्थित छल, जाहि मे ऋग्वेद कालक व्यक्ति रहैत छलाह । गोतम राहुगणक परवर्ती ऋषि लोकनि गौतम कहल गेलाह । एहने एकटा सन्यासी रामायण काल मे अहिल्या स्थानक नजदीक रहैत छलाह । 

मिथिलाक गाथा कतओक शताब्दी धरि पसरल अछि । ई कहल गेल अछि जे गौतम बुद्ध आ वर्धमान महावीर दुनू गोटे मिथिला मे रहल छलाह । ई प्रथम सहस्त्राब्दिक दौरान भारतीय इतिहासक केंद्र छल आ विभिन्न साहित्यिक आ धर्मग्रंथ संबंधी काज मे अपन योगदान देलक । 

मैथिली मिथिला मे बाजय जायवला भाषा थिक । भाषाविद मैथिली कें पूर्वी भारतीय भाषा मानलनि अछि आ एहि तरहें ई हिन्दी सँ भिन्न अछि । मैथिली कें पहिने हिन्दी आ बंगला दुनूक उप-भाषा मानल जाइत छल । वस्तुत: मैथिली आब भारतीय भाषा बनि चुकल अछि । 

मिथिलाक सभ सँ महत्वपूर्ण संदर्भ हिन्दू ग्रंथ रामायण मे अछि , जतए एहि भूमिक राजकुमारी सीता कें रामक पत्नी कहल गेल अछि । सीता राजा जनकक सीताक पिता छलाह, जे मिथिला पर जनकपुर सँ शासन केलनि । प्राचीन समय मे मिथिलाक अन्य प्रसिद्ध राजा भानुमठ, सतघुमन्य, सुचि, उर्जनामा, सतध्वज, कृत, अनजान, अरिस्नामी, श्रुतयू, सुपाश्यु, सुटयशु, श्रृनजय, शौरमाबि, एनेना, भीमरथ, सत्यरथ, उपांगु, उपगुप्त, स्वागत, स्नानंद, शुसुरथ, जय-विजय, क्रितु, सनी, विथ हस्या, द्ववाति , बहुलाश्‍व आदि भेलाह । 

’मिथिला, एहि क्षेत्र मे सृजित हिन्दू कलाक एक प्रकारक नाम सेहो थिक । ई विशेष कऽ वियाह सँ पूर्व महिला द्वारा घर के सजेबाक लेल घरक देबार आ सतह पर धार्मिक ज्यामितीय आ 

चिहनांकित आकृति सँ शुरु भेल आ एहि क्षेत्र सँ बाहर एकरा नहि जानल जाइत छल । जहन एहि कलाक लेल कागजक शुरुआत भेल तँ महिला लोकनि अपन कलाकृति कें बेचय लगलीह आ कलाक विषय वस्तु कें लोकप्रिय आ स्थानीय देवताक संगहि प्रतिदिनक घटनाक चित्रांकन धरि विस्तृत केलीह । गंगा देवी संभवत: सब सँ प्रसिद्ध मिथिलाक कलाकार छथि । ओ परंपरागत धार्मिक मिथिला चित्रांकन, लोकप्रिय देवताक चित्रांकन, रामायण आ अपन जिनगीक घटना सँ दृश्यक चित्रांकन कयलनि । 

भौगोलिक सीमा आ जलवायु 

मिथिला क्षेत्र गंगाक उत्तरी मैदान मे अछि । एहि क्षेत्रक मुख्य स्थान दरभंगा, मधुबनी, झंझारपुर, समस्तीपुर, मधेपुरा, बेगूसराय, सहरसा, सीतमढ़ी, जनकपुर आदि अछि । जनकपुर आब नेपालक क्षेत्र मे अछि । एहि क्षेत्रक जलवायु मुख्यत: शुष्क आ ठंढ़ा अछि । गर्मी मे तापमान ३५ सँ ४५ डिग्री सेल्सियस आ जाड़ मे ५ सँ १५ डिग्री सेल्सियस रहैत अछि । एतय घुमबाक लेख फ़रवरी - मार्च आ अक्तूबर- नवंबर सब सँ नीक अछि । 

एहिठामक माँटि खेतीक लेल उपयुक्त अछि, जे क्षेत्रक मुख्य आर्थिक आधार अछि । कृषिक लेल पर्याप्त वर्षा होइत अछि । 

एहि क्षेत्र मे प्रतिवर्ष बाढ़ि अबैत अछि, जाहि सँ एहिठामक लोकक जिनगी मे कठिन समस्या अबैत अछि आ करोड़ों रुपयाक नोकसान होइत अछि । एहिठामक लोकक लेल किछु व्यक्ति द्वारा विभिन्न नदी पर बाँधक जरुरतिक अनुभव कएल गेल अछि । किछु अन्य कें एहि बातक भय सेहो छनि जे भूकंप- प्रवण क्षेत्र मे वृहत बाँध वार्षिक बाढ़ि सँ बेसी खतरनाक होयत । 

अर्थव्यवस्था 

खेती एहि क्षेत्रक मुख्य आर्थिक कार्यकलाप थिक । मुख्य फ़सल धान, गहूम , दालि, मकई, मुँग, उडद, राहड़ि आदि आ जूट (एकर उत्पादन मे कमी आयल अछि) अछि । आई- काल्हि देशक आन भागक तुलना मे खेती नीक नहि रहबाक कारणें, ई सब सँ अधिक पिछड़ल क्षेत्र भऽ गेल अछि । बाढि हर वर्ष फ़सलक पैघ भाग कें नाश कऽ दैत अछि । उद्योगक अनुपस्थिति, कमजोर शैक्षिक अवसंरचना आ राजनीतिक अपराधीकरणक कारणें अधिकांश युवक कें शिक्षा आ आमदनीक लल स्थान परिवर्तन करय पड़ैत छनि । एहि परिवर्तनक उज्जवल पक्ष इ आछे जे ओ लोकनि भारतक प्रमुख क्षेत्र और स्थान मे महत्वपूर्ण भऽ गेलाह अछि । 

मिथिला पेंटिग आब बाजार मे हिस्सेदारी प्राप्त कयलक अछि । आब सरकार सेहो राष्ट्रीय धरोहरक रूप मे एकरा सहायता दऽ रहल अछि । 

व्यक्ति आ जीवन 

ई भूभाग संस्कृति आ परंपरा मे धनी अछि । एतयक लोक अपन माता- पिताक आदर करैत छथि आ शांतिपूर्वक जीवन मे विश्‍वास रखैत छथि । ईश्‍वर पर अत्यधिक विश्‍वास करैत ओ सामान्यतया पैघ परिवार मे रहैत छथि । मुख्य सांस्कृतिक समारोह वियाह आ त्योहारक दौरान होइत अछि । फ़गुआ, दियावाती, दुर्गा पूजा, छठि, शिवराति, मधुश्रावणी (मुख्यत: नवविवाहित जोड़ा सँ संबंधित ) आ मोहर्रम धुमधाम सँ मनाओल जाइत अछि । 
एकटा छोट छीन फ़िल्म उद्योग सेहो अछि । मैथिल मे बनल अनेको फ़िल्म मे "सस्ता जिनगी महग सेनूर ", "ममता गाबय गीत" संभवत: अधिक जानल- मानल अछि । एहि भूभाग निवासी मैथिल कहबैत छथि । 

मूड़न मिथिलाक बहुत लोकप्रिय परंपरा अछि । मूड़न मे बच्चाक केश पहिल बेर काटल जाइत अछि । एहि मे भोजभात आ अन्य समारोह सेहो होइत अछि । कखनो- कखनो ई फ़िजूलखर्ची सेहो भऽ जा जाइत अछि । मिथिलाक सब सँ अपूर्व आ महत्वपूर्ण रिवाज एकर "वियाह" परंपरा अछि । एहि मे चतुर्थि सहित चारि दिनक वियाह समारोह, बरिसाइत, मधुश्रावणी, कोजगरा आ अंत मे दुरागमन (कनियाँक घर आयब) शामिल अछि । वियाह ब्राह्मण आ कर्ण- कायस्थक बीच वंश- विषयक सारिणी जे पंजी कहबैत अछि के प्रयोग कऽ कऽ परंपरागत रूप सँ निर्धारित कएल जाइत अछि । 

गोनू झाक खिस्सा पोता-पोती के सुनेबाक लेल दादीक लोकप्रिय खिस्सा अछि । मैथिली सुनबा आ बजबा मे एतेक मीठ आ कोमल अछि जे मैथिलक बीच गर्मागर्म बहसक अनुमान लगायब कठिन अछि ।


मिथिलाक राजा

Picture
मिथिला प्राचीन भारत मे हिमालय सँ लऽ कऽ गंगा नदीक बीच स्थित विदेह साम्राज्यक राजधानी छल । विदेह साम्राज्य भ्रांतिवश मिथिला साम्राज्यक रूप मे अधिक जानल जाइत अछि । मिथिलाक प्राचीन भाग आब भारत आ नेपालक भागक रूप मे बँटा गेल अछि । रामायण ग्रंथक अनुसार मिथिला विदेह साम्राज्यक राजधानी छल । एहि शहरक पहचान नेपालक धनुषा जिलाक आजुक जनकपुर सँ कयल जाइत अछि । एकरा जनकपुरधाम सेहो कहल जाइत अछि । एहि क्षेत्र के तीरभुक्ति (तिरूहतक प्राचीन नाम) सेहो कहल गेल अछि । विदेह या मिथिला साम्राज्यक उत्तर मे हिमालय, दक्षिण मे गंगा, पूब मे कोशी नदी आ पश्‍चिम मे गंडक नदी छल । एहि क्षेत्र मे दुनियाक धार्मिक इतिहासक दू आदरनीय व्यक्ति गौतमबुद्ध आ वर्धमान महावीर सेहो अपन पर्याप्त समय बितेलनि । 

प्राचीन इतिहास आ मिथक 

पौराणिक गाथाक अनुसार निमि एहि क्षेत्रक पहिल राजा छलाह आ हुनक मृत्यु गुरु वशिष्ठ द्वारा देल गेल श्रापक कारणें भेलनि । हुनक मृत्युक बाद अराजकता पसरि गेल । तखन साधू सन्यासी लोकनि एकत्रित भेलाह आ निमिक आत्मा कें मानवीय रूप मे पुन: अयबाक प्रार्थना कयलनि । निमिक मृत शरीर के एहि आशा सँ चूर्णक रूप मे राखल गेल जे हुनक मृत शरीर पुन: मानवीय रूप मे आबि जाए । सन्यासी लोकनिक प्रयास सफ़ल भेलनि आ चूर्ण सँ मिथि (एकर अर्थ अछि माटि) उत्पन्न भेलाह । मिथिलाक नाम एहि मिथि राजा सँ लेल गेल अछि । ओ अपन राज्यक राजधानी मिथिलापुरी मे स्थापित केलनि आ एहि तरहें ई क्षेत्र मिथिला कहाओल । चूँकि हुनक जन्म अपन पिताक शरीर सँ भेलनि तें ओ जनक कहेलाह । एकरा बाद मिथिलाक राजा कें जनक कहल गेलनि । सब सँ प्रसिद्ध जनक सीरध्वज जनक (सीताक पिता) भेलाह । ओ मिथिलाक एकैसम जनक छलाह । ई साम्राज्य विदेह जनक कहल गेल । विदेह जनकक राजवंश मे ५२ गोट राजा भेलाह । ई क्षेत्र मूलत: विदेहक रूप मे जानल गेल । विदेह साम्राज्यक उल्लेख पहिल बेर यजुर्वेद संहिता मे भेल अछि । विदेहक राजधानी मिथिलाक उल्लेख जातक (बौद्ध सहित्य), ब्राह्मण, पुराण (वृहद विष्णु पुराण मे विस्तार सँ वर्णित) आ रामायण आ महाभारत एहन विभिन्न ग्रंथ मे भेल अछि । महाभारत और जातक मे राजाक सूची देल गेल अछि । 


जननक वंश परंपरा 


रामायण काल धरि जनक 

वाल्मीकि रामायण मे जनकक वंश परंपराक उल्लेख अछि । वाल्मिकी रामायण मे स्वयं राजा सीरध्वज जनक अपन पूर्ववर्ती राजाक उल्लेख राजा दशरथ (रामक पिता) सँ कयलनि अछि । वाल्मीकि रामायणक अनुसार जनक, जे मिथिला पर शासन केलनि, हुनक सूची एना अछि :


निमि 


मिथि - मिथिलाक संस्थापक आ पहिल जनक 
उदवसु 
नन्दिवर्धन 
सुकेतु 
देवव्रत 
ब्रिहद्व्रत 
महावीर 
सुध्रिति 
दृष्टकेतु 
हर्यस्व 
मरु 
प्रतिन्धक 
क्रितिरथ 
देवमिध 
विभूत 
महिध्रत 
कीर्तिरत 
महोरम 
श्वर्णोरम 
हरिस्वरोम 
सीरध्वज - सीताक पिता 

 

रामायण कालक पश्‍चात जनक : 


भानुमान 
शतद्युम्न 
शुचि 
उर्ज्नामा 
क्रिति 
आन्जन 
कुरुजित 
अरिष्टनेमि 
श्रुतायु 
सुपार्श्व 
सृन्जय 
क्षेमावी 
आनेना 
भौमरथ 
सत्यरथ 
उपागु 
उपगुप्त 
स्वागत 
श्वानन्द 
शुवर्चा 
शुपार्श्व 
शुभाष 
शुश्रुत 
जय 
विजय 
ऋत 
सुनय 
वीतहव्य 
धृति 
बहुलाश्व 
क्रिति 

जनकक पश्‍चात मिथिला 

इ कहल जाइत अछि जे जनक राजवंशक अंतिम राजा- कीर्ति जनक अत्याचारी छलाह आ अपन प्रजा पर हुनक नियंत्रण नहि रहलनि । आचार्य (विद्वान व्यक्ति) लोकनिक नेतृत्व मे आम जन हुनका गद्दी पर सँ उतारि देलक । मिथिला साम्राज्यक एहि पतनक अवधि मे लिच्छ्वीक प्रसिद्ध गणतंत्रक वैशाली मे उदय भऽ रहल छल आ मिथिला क्षेत्र सदी ईसा पूर्व सातम सदीक आसपास लिच्छ्वी राज्यक अंग बनि गेल । पुन: छठम सदी ईसा पूर्व मगध साम्राज्यक अजातशत्रु लिच्छ्वी कें पराजित कऽ देलनि आ एहि तरहें मिथिला मगध साम्राज्यक नियंत्रण मे आबि गेल । एकरा बाद विभिन्न राजवंश यथा शिशुनाग, नंद, मौर्य, शुंग, कंठ, गुप्त, वर्धन आदि समय- समय पर एतय शासन केलनि । जनकक बाद पाँच- छह शताब्दी धरि, जा धरि कि राजा सलहेस राजा भेलाह मिथिला मे कोनो महत्वपूर्ण राजा नहि भेलाह । शैलेश जयवर्द्धन ओ महिसौधा- सिरहा (वर्तमान मे नेपाल मे) कें अपन राजघानी बनौलनि । ओ कतेको बेर तिब्बती आक्रमण सँ एहि क्षेत्रक रक्षा केलनि । आ तें हुनका जयवर्द्धन सँ शेलेंद्र (पहाड़क राजा ) कहल गेल । जे बाद मे सलहेस भऽ गेल ।

लगभग छ्ठम शताब्दी सँ नवम शताब्दी- पाल राजवंश 

मिथिला पर प्राय: चारि दशक धरि पाल वंशक राजा शासन केलनि । पालवंश बौद्ध मतक अनुयायी छलाह । हुनक राजधानी बलिराजगढ़ (बाबूवरही -मधुबनी जिला) मे अवस्थित मानल गेल अछि । पाल वंशक अंतिम राजा मदनपाल छलाह । ओ कमजोर राजा रहथि आ हुनका आदिशूर सामंत सेनक सेना हरा देलकनि । पालवंशक प्रमुख राजा छलाह : - 

 

" गोपाल (७५०-७७०) 
" धर्मपाल (७७०-८१०) 
" देवपाल (८१०-८५०) 
" शुरपाल/महेन्द्रपाल (८५० - ८५४) 
" विग्रहपाल (८५४ - ८५५) 
" नारायणपाल (८५५ - ९०८) 
" राज्यपाल (९०८ - ९४०) 
" गोपाल ॥ (९४०-९६०) 
" विग्रहपाल ॥ (९६० - ९८८) 
" महिपाल (९८८ - १०३८) 
" नयपाल (१०३८ - १०५५) 
" विग्रहपाल ॥। (१०५५ - १०७०) 
" महिपाल ॥ (१०७० - १०७५) 
" शुरपाल ॥ (१०७५ - १०७७) 
" रामपाल (१०७७ - ११३०) 
" कुमारपाल (११३० - ११४०) 
" गोपाल ॥। (११४० - ११४४) 
" मदनपाल (११४४ - ११६२) 
" गोविन्दपाल (११६२ - ११७४) 

पाल वंशक संस्थापक गोपाल छलाह । ओ बंगालक पहिल स्वतंत्र बौद्ध धर्मावलंबी राजा छलाह आ लोकतांत्रिक चुनाव द्वारा गौड़ मे ७५० ई० मे सत्ता मे अयलाह । ई चुनाव ओहि समय अपना आप मे अद्‌भुत छल । ओ ७५०-७७० क बीच शासन केलनि आ पूरा बंगाल पर अपन नियंत्रणक विस्तार करैत अपन शक्तिक संचय केलनि । हुनक उत्तराधिकारी धर्मपाल (७७०-८१० ई) आ देवपाल (८१०-८५० ई ) उत्तरी आ पूर्वी भारतीय उपमहाद्वीप मे अपन नियंत्रणक विस्तार केलनि । पाल साम्राज्य सेन राजवंशक आक्रमणक कारण बारहवीं सदी मे बिखरि गेल । 


लगभग ग्याहरवीं सदी सँ १३वीं सदी - सेन वंश 

सेनवंश हिन्दुत्वक अनुयायी छलाह आ तें मिथिलाक लोक, जे हिन्दुत्वक अनुयायी छल मदनपाल कें हरेबा मे सामंत सेन के मददि केलनि । सेन वंश मे ५ गोट राजा भेलाह :


हेमन्त सेन (१०७० ई.) 
विजय सेन (१०९६-११५९ ई.) 
बल्लाल सेन (११५९ - ११७९ ई.) 
लक्ष्मण सेन (११७९ - १२०६ ई.) 
विश्वरूप सेन (१२०६ - १२२५ ई.) 
केशव सेन (१२२५-१२३० ई.) 


लगभग १३वीं सदी सँ १४वीं सदी -कर्नाट राजवंश 

नान्यदेव सेन वंशक राजा लक्ष्मण सेन के पराजित केलनि आ मिथिलाक राजा भऽ गेलाह । नान्य देव पश्‍चिम सँ एलाह आ अपन पहिल राजधानी सिमरौन गढ़ (बीरगंज) बनेलनि । संपूर्ण मिथिला कें जीतलाक बाद ओ अपन राजधानी कमलादित्य स्थान ( कमलादान ) हस्तांरित केलनि । अंधराठाढी नामक दोसर गामक उल्लेख सेहो कर्नाट लोकनिक राजधानीक रूप मे भेल अछि। एहि गाम मे ६ दर्जन पोखरि अछि, जाहि मे सँ २७टा नयनाभिराम मालाक मोती जकाँ अछि । ई पोखरि आपस मे एक दोसर सँ जुड़ल अछि आ बाढ़िक पानि सँ पुन: भराईक लेल सुगरवे नदी सँ सेहो जुड़ल अछि । कर्नाट राजा द्वारा निर्मित ई पोखरि सभ अद्‌भुत सिंचाई व्यवस्थाक नमूना अछि आ आठ सदी बितलाक बाद आइयो एकर उपयोगिता अछि । कर्नाट राजवंश मे सेहो पाँच गोटा राजा भेलाह :-

नान्य देव : महान योद्धा हेबाक अलावा नान्यदेवक संगीत मे सेहो खूब रूचि छल । ओ रागक वर्गीकरण आ विश्‍लेषण केलनि आ हास्य (हँसी) और श्रृंगार (सजावट) रसक लेल माध्य लय, करूण रसक लेल विलम्बित , वीर ( बहादुरी) क लेल द्रुत रस, रौद्र (क्रोध), अद्‌भूत (विचित्र) और भयानक (डरावना) रसक चयन केलनि । ओ संगीत पर एकटा वार्ता " सरस्वती हृदयालंकार " लिखलनि, जे भंडारकर अनुसंधान संस्थान पुणे मे सुरक्षित अछि । 


गंग देव 
नरसिंह देव 
शक्रसिंह देव 


हरि सिंह देव - राजा हरिसिंह देव सब सँ बेसी प्रसिद्ध भेलाह । मैथिल ब्राह्मण आ मैथिल कायस्थ (कर्ण कायस्थ) मे पंजी व्यवस्था शुरू करब आ लागू करब मे प्रमुख सूत्रधार छलाह । ओ कला आ साहित्यक महान प्रेमी छलाह । 

पं० कामेश्वर ठाकुर हरिसिंह देवक दरबार मे राजकीय पुरहित छलाह, जे वर्ण रत्‍नाकर लिखलनि । वर्ण रत्‍नाकर कोनो उत्तर भारतीय भाषा मे लिखल गेल पहिल गद्य आ कोनो उत्तर भारतीय भाषाक विश्‍वकोष मानल जाइत अछि । पं० कामेश्‍वर ठाकुर ओईनवार-राजवंशक संस्थापक छलाह । 


१३२६ ई० सँ १५२६ ई० धरिक राजा- ओईनवार वंश 

फ़िरोजशाह तुगलक १३२६ ई० मे मिथिला क्षेत्र पर आक्रमण केलक आ एकरा जीत लेलक । कर्नाट राजवंशक अंतिम राजा हरिसिंह देव नेपाल भागि गेलाह । इतिहासकार डॉ० उपेन्द्र ठाकुरक अनुसार अगिला २७ साल धरि मिथिला मे अराजकता व्याप्त रहल । १३५३ ई० मे फ़िरोजशाह तुगलक कामेश्‍अवर ठाकुर कें करद राजा बनेलनि । करद राजाक नियुक्ति सम्राट द्वारा कर इक्ट्‍ठा करबाक और भुगतान करबाक लेल और सेनाक रखरखावक लेल कएल गेल । कामेश्‍वर ठाकुर ओइनी गामक वासी छलाह, जे वर्तमान मे मुजफ़्फ़रपुर जिला मे अछि । राजवंशक नाम ओइनी गामक नाम पर ओइनवार राजवंश पड़ल । कामेश्‍वर ठाकुर विद्वान छलाह आ तें कर इकट्‍ठा कऽ कऽ फ़िरोजशाह तुगलक कें देबा मे असमर्थ रहलाह । आ तें हुनका गद्दी पर सँ उतारि देल गेल आ हुनक पुत्र भोगीश्‍वर ठाकुर कें मिथिला क्षेत्रक राजा बनाओल गेल । इ राजवंश भारतवर्षक किछु राजवंश मे सँ छल, जे ब्राहाण छल । तत्पश्‍चात मिथिला क्षेत्र मे केवल ब्राह्मण जाति सँ राजा भेलाह । ओइनवार राजवंशक राजाक सूची एना अछि । :


कामेश्‍वर ठाकुर - १३५३ ई मे फ़िरोजशाह तुगलक स्वयं प० कामेश्‍वर ठाकुर कें करद राजा नियुक्त केलनि । 


भोगीश्‍वर ठाकुर - कामेश्‍वर ठाकुर सक्षम शासक सिद्ध नहि भेलाह आ फ़िरोजशाह तुगलक कें कर इकट्‍ठा कऽ कऽ देबा मे असमर्थ छलाह । आ तें फ़िरोजशाह तुगलक हुनका गद्दी पर सँ हटा देलक आ हुनका स्थान पर हुनक पुत्र भोगीश्‍वर ठाकुर कें राजा बनेलक । 

गणेश्‍वर सिंह- अपन पिता भोगीश्‍वर ठाकुरक निधनक पश्‍चात गणेश्‍वर सिंह राजा भेलाह । गद्दी हड़पि लेबाक षडयंत्र मे असलान नामक व्यक्ति द्वारा १३६१ मे हुनक हत्या कऽ देल गेल । असलान हुनक दुनू पुत्र वीर सिंह आ कीर्ति सिंह के सेहो मारय चाहैत छल परन्तु ओ सफ़ल नहि भेल कारण हुनका सुरक्षित रुप सँ कतौ नुका देल गेल । 


कीर्ति सिंह - कीर्ति सिंह तुगलक शासक सँ मददि मँगलनि, जे मिथिला पर पुन: कब्जा जमेबाक लेल अपन सेना भेजलाह । तेहक लड़ाई मे आसलान आ वीर सिंह मारल गेलाह । कीर्ति सिंह राजा भेलाह परन्तु शीघ्रे हुनक निधन भऽ गेलनि । 

भवेश ठाकुर (भव सिंहक रूप मे सेहो जानल गेलाह) - ओ कामेश्‍वर ठाकुरक छोट पुत्र छलाह । चूँकि कीर्ति सिंह नि:संतान मरलाह, राज्य भवेश ठाकुरक छोट पुत्र छलाह । 

देव सिंह 


शिव सिंह - ओ अपना कें स्वतंत्र राजा घोषित कऽ देलनि आ तुगलक साम्राज्य के करक भुगतान रोकि देलनि । तुगलक साम्राज्यक प्राधिकार के चुनौती देबाक हुनक निर्णयक कारणें इब्राहिम शाह तुगलक मिथिला पर आक्रमण केलक । युद्ध मे शिवसिंह मारल गेलाह । 
पदम सिंह - ओ शिवसिंहक छोट भाय छलाह । 

रानी विश्‍वास देवी - पदम सिंह कम उम्र मे संतान- हीन मरि गेलाह । हुनक मत्युक बाद हुनक पत्नी रानी विश्‍वास देवी मिथिला पर शासन केलनि, परन्तु ओहो शीघ्रे मृत्यु कें प्राप्त कऽ गेलीह । 

हरिसिंह - ओ पदमसिंहक पितीऔत भाई छलाह । चूँकि पदम सिंह नि:-संतान मरि गेलाह तें राजगद्दी हिनका भेटलनि । 

नरसिंह 
धीरसिंह (१४५९ सँ १४८० ई०) 

भैरव सिंह (१४८० सँ १५७५) - ओ लोकप्रिय राजा छलाह आ पोखरि खुनेनाई, रस्ता बनेबनाई , इनार खुनेनाई, मंदिर बनबेनाई आदि विभिन्न विकास संबंधी काज शुरु केलनि । ओ कला आ संस्कृतिक पैघ प्रेमी छलाह । 
रामचंद्र सिंह देव 

लक्ष्मी नाथ सिंह देव - ओ ओइनवार वंशक अंतिम राजा छलाह । १५२६ ई० मे सिकन्दर लोदी मिथिला पर आक्रमण केलक और महाराज लक्ष्मीनाथ सिंह देव ओहि लड़ाई में मारल गेलाह । 

१५२६ सँ १५७७-अराजकताक काल 

सिकन्दर लोदी अपन जमाय अलाउद्दीन कें एहि क्षेत्रक राजा बनौलनि । एहि अवधि मे दिल्ली मे मुगल साम्राज्यक जड़ि स्थिर भऽ रहल छल । अलाउद्दीन सफ़ल शासक नहि छलाह आ आगामी ५० वर्ष धरि मिथिला मे अराजकता पसरल रहल । जहन अकबर सम्राट भेलाह तँ ओ मिथिला मे सामान्य स्थिति बहालीक प्रयास केलनि । ओ एहि निष्कर्ष पर पहुँचलाह जे जा धरि मिथिलाक राजा मैथिल ब्राह्मण कें नहि बनाओल जाएत , ता धरि एतय शान्ति नहि होयत या कर नहि असूलल जा सकत । १५७७ ई० मे अकबर प० महेश ठाकुर के मिथिलाक शासक घोषित केलनि । प० महेश ठाकुर खरौड़े भौर मूलक छलाह आ तें हुनक राजवंश ’खंडवला कुल’ कहौलक आ एकर राजधानी मधुबनी जिला मे राजग्राम बनाओल गेल । 

१५७७ सँ १९४७- खंडवला राजवंश 

राजा महेश ठकुर 
राजा गोपाल ठाकुर - ओ राजा महेश ठाकुर ज्येष्ठ पुत्र छलाह । हुनक अचानक मृत्यु भऽ गेलनि आ । ओ बड़ कम्मे दिन शासन केलाह । 
राजा परमानंद ठाकुर - ओ राजा महेश ठाकुरक दोसर पुत्र छलाह । ओहो कम्मे दिन शासन केलनि । 
राजा शुभंकर ठाकुर (१६०७ मे मृत्यु ) - ओ राजा महेश ठाकुरक पाँचम पुत्र छलाह । 
राजा पुरुषोत्तम ठाकुर (१६०७-१६२३) - ओ राजा शुभंकर ठाकुरक पुत्र छलाह । ओ १६२३ मे मारल गेलाह ।
राजा नारायण ठाकुर (१६२३-१६४२) 
राजा सुंदर ठाकुर (१६४२-१६६२)
राजा महिनाथ ठाकुर (१६६२-१६८४)
राजा निरपत ठाकुर- (१६८४-१७०० ई० धरि) - ओ अपन राजधानी राजग्राम सँ दरभंगा अनलनि । भारतक आजादी धरि दरभंगा हुनका लोकनिक शक्‍तिक केन्द्र बनल रहल । 
राजा रघु सिंह (१७००-१७३६) - राजा रघु सिंह दरभंगा आ मुज्जफ्फरपुर सहित पूरा सरकार तिरहुतक लीज १,००,००० टाका वार्षिक पर प्राप्त केलनि, जे ओहि समय मे एकटा पैघ रकम छल ।
राजा विष्णु सिंह (१७३६-१७४०)
राजा नरेन्द्र सिंह (१७४०-६०)
राजा प्रताप सिंह (१७६०-१७७६)
राजा माधो सिंह (१७७६-१८०८)
महाराजा छत्र सिंह बहादुर (१८०८-३९)
महाराजा रुद्र सिंह बहादुर (१८३९-५०)
महाराजा महेश्वर सिंह बहादुर (१८५०-६०)
महाराजा लक्ष्मीश्वर सिंह बहादुर (१८६०-९८)
महाराजा रमेश्वर सिंह बहादुर (१८९८-१९२९)
महाराजा कामेश्‍वर सिंह बहादुर (१९२९-१९४७) - १५ अगस्त १९४७ भारतक आजादी धरि, जहन सभटा राज्य भारतीय संघ मे शामिल भऽ गेल ।

राज दरभंगा

Picture
दरभंगा राज राज दरभंगाक रूप मे सेहो जानल जाइत अछि । एकर इतिहास सोलहम शताब्दी मे शुरू होइत अछि आ एकर पहिल राजा महेश ठाकुर छलाह । दरभंगा राजक क्षेत्रफल लगभग २४१० वर्ग कि०मी० छल आ एहि मे ४,४९५ टा गाम १८ गोट सरकिल मे छल, जे बिहार सँ लऽ कऽ बंगाल धरि पसरल छल । ई भारतक सब सँ पैघ जमींदारी छल आ एकर व्यवस्था सेहो नीक सँ कयल गेल छल ।

दरभंगाक राज परिवारक इतिहास
तुगलक राजवंशक पतनक बाद उत्तरी बिहार मे अराजकता पसरि गेल । तुगलक उत्तरी बिहार पर आक्रमण कयलक आ संपूर्ण उत्तरी बिहार के अपना नियंत्रण मे कऽ लेने छल । तथापि तुगलक वंशक पतन आ मुगल साम्राज्यक स्थापनाक बीच समग्र बिहार मे अराजकता आ अशांति पसरल रहल । बादशाह अकबर इ अनुभव केलनि जे मिथिला सँ कर तखने वसूलल जा सकैत अछि जहन ओतक राजा ब्राह्मण हो आ ओ ओतय शांतिक स्थापना करथि । ब्राह्मण राजाक विषय मे निर्णय लेबाक इहो कारण छल जे एहिठाम ब्राह्मणक प्रमुखता छल आ पहिनो ब्राह्मण राजा रहि चुकल छलाह । 

सम्राट अकबर राजपंडित चन्द्रपति ठाकुर के गढ़ मंगला (आब मध्य प्रदेश) सँ बजेलनि आ हुनका अपन एकटा बेटाक नाम पुछ्लनि जे मिथिलाक केयरटेकर भऽ सकैत छथि । चन्द्रपति ठाकुर अपन माझिल बेटा पं. महेश ठाकुरक नाम लेलनि आ अकबर पं. महेश ठाकुर के मिथिलाक राजा घोषित केलनि । इ घटना राम नवमी १५७७ ई. मे भेल आ एकरा गढ़मंगलाक कोनो कवि एना उल्लेख कयने छथि :-

"अति पवित्र मंगल करन, रामजनम के दिन । अकबर हर्षित महेषको तिरहुत राजा कौन?

"नवग्रह वेद वशुंधरा, शकमे अकबर शाह, पंडित सुबोध महेशको, किन्हो मिथिला राज ।"

महेश ठाकुरक परिवार/उत्तराधिकारी अपन परिवारक प्रभुत्व के समाज, कृषि आ राजनीति मे समेकित केलनि । हुनक परिवार खन्डवला परिवार (सब सँ धनिक जमींदार) के रूप मे ख्याति पौलक । दरभंगा राज दरभंगाक शक्तिक केन्द्र १७६२ मे बनल । एहि सँ पहिने एकर केन्द्र राजनगर (मधुबनी जिला) मे छल । राज दरभंगाक कतेको राजमहल जेना कि रामबाग राजमहल, लक्ष्मीश्वर विलास राजमहल, नरगौना राजमहल आ बेला राजमहल दरभंगा मे अछि । एकर अलावा राजनगर मे सेहो हिनक राजमहल छल । राज दरभंगाक प्राय: सभ शहर मे संपत्ति छल जेना कि दिल्ली, कोलकाता, शिमला, मसूरी, इलाहाबाद, वाराणसी, पटना, राँची आदि । महाराज लक्ष्मीश्वर सिंह आ महाराज रमेश्वर सिंहक अधीन राज दरभंगा भारत मे एकटा आदर्श जमींदारी छल । अकाल राहत, सड़क निर्माण, नहर आ पूलक निर्माण आदि सँ संबंधित बहूत रास काज एहि समय मे भेल । बंगालक पैघ अकालक समय मे महाराज लक्ष्मीश्वर सिंह ३,००,००० टाकाक योगदान देलनि । आजादीक बाद भारत सरकार अनेको भूमि सुधार कयलक आ जमींदारी समाप्त भऽ गेल । जमींदारी खत्म भेलाक बाद दरभंगा राजक भाग्यक सितारा डूबि गेल । दरभंगा राजक अंतिम महाराज बहादुर सर कामेश्वर सिंह बिनु उत्तराधिकारीक मरि गेलाह । परिवारक बाकी सदस्य उत्तराधिकारक विवाद मे संलग्न भऽ गेलाह आ आमजनक बीच हुनक मान्यता नहि रहि गेल ।

राजकीय स्थिति पर विवाद

जेना कि उपर मे उल्लेख भेल अछि राज दरभंगाक उत्पत्ति सम्राट अकबर द्वारा पं. महेश ठाकुर के तिरहुतक सरकार देबा सँ शुरू होइत अछि । राज दरभंगा एकटा साम्राज्य छल एहि सिद्धांत के मानयवलाक कहब छनि जे प्रिवी काउन्सिल ई मानलक जे एहिठामक राजा वंशानुगत होइत छलाह । संगहि अठारहम शताब्दीक अंत तक तिरहुत सरकार स्वतंत्र राज्य भऽ गेल छल, जा धरि कि अंग्रेज बिहार आ बंगाल के जीत नहि लेलक । एकर विपरीत किछु गोटाक इहो कहब छनि जे राज दरभंगा कहियो साम्राज्य नहि छल वरन्‌ इ एकटा जमींदारी छल । राज दरभंगाक शासक भारत मे सब सँ पैघ भूमिक मालिक रहबाक कारणें राजा आ बाद मे महाराजा आ महाराजाधिराज कहेलाह । तथापि हुनका लोकनि के कहियो शासन करयवला राजकुमार नहि मानल गेल । बिहार आ बंगाल जीतलाक बाद ब्रिटिश राज स्थायी बंदोवस्त लागू कयलक आ ताहि मे दरभंगाक राजा के जमींदार मानल गेल ।

राज दरभंगाक चिह्‌न

राज दरभंगा अनेक चिह्‌नक प्रयोग केलनि । एहि मे सँ एकटा छल जाल मे माछ, दोसर छल षष्टकोणीय चक्र मे माछ आ तेसर छल उपर दिल मुड़ल माछ ।

राज दरभंगाक राजाक सूची

राजा महेश ठाकुर 
राजा गोपाल ठाकुर - ओ राजा महेश ठाकुर ज्येष्ठ पुत्र छलाह । हुनक अचानक मृत्यु भऽ गेलनि आ ओ बड़ कम्म दिन शासन केलाह । 

राजा परमानंद ठाकुर - ओ राजा महेश ठाकुरक दोसर पुत्र छलाह । ओहो कम्मे दिन शासन केलनि । 

राजा शुभंकर ठाकुर (१६०७ मे मृत्यु ) - ओ राजा महेश ठाकुरक पाँचम पुत्र छलाह । 
राजा पुरुषोत्तम ठाकुर (१६०७-१६२३) - ओ राजा शुभंकर ठाकुरक पुत्र छलाह । ओ १६२३ मे मारल गेलाह ।
राजा नारायण ठाकुर (१६२३-१६४२) 
राजा सुंदर ठाकुर (१६४२-१६५२)
राजा महिनाथ ठाकुर (१६६२-१६८४)
राजा निरपत ठाकुर- (१६८४-१७०० ई० धरि) - ओ अपन राजधानी राजग्राम सँ दरभंगा अनलनि । भारतक आजादी धरि दरभंगा हुनका लोकनिक शक्‍तिक केन्द्र बनल रहल । 
राजा रघु सिंह (१७००-१७३६) - राजा रघु सिंह दरभंगा आ मुज्जफ्फरपुर सहित पूरा सरकार तिरहुत लीज १,००,००० टाका वार्षिक पर प्राप्त केलनि, जे ओहि समय मे एकटा पैघ रकम छल ।
राजा विष्णु सिंह (१७३६-१७४०)
राजा नरेन्द्र सिंह (१७४०-६०)
राजा प्रताप सिंह (१७६०-१७७६)
राजा माधो सिंह (१७७६-१८०८)
महाराज छत्र सिंह बहादुर (१८०८-३९)
महाराज रुद्र सिंह बहादुर (१८३९-५०)
महाराज महेश्वर सिंह बहादुर (१८५०-६०)
महाराज लक्ष्मीश्वर सिंह बहादुर (१८६०-९८)
महाराज रमेश्वर सिंह बहादुर (१८९८-१९२९)
महाराज कामेश्‍वर सिंह बहादुर (१९२९-१९४७) - १५ अगस्त, १९४७ - भारतक आजादी धरि, जहन सबटा राज्य भारतीय संघ मे शामिल भऽ गेल । 

दरभंगा राजक राजमहल
दरभंगा मे दरभंगा राज द्वारा निर्मित अनेक राजमहल अछि -
१. नरगौना राजमहल - १९३४ मे निर्मित, बाद मे मिथिला विश्वविद्यालय के दऽ देल गेल ।
२. रामबाग राजमहल - ई किलाक अंदर बनल अछि आ सबसँ पुराण अछि ।
३.लक्ष्मीविलास राजमहल - इ १९३४क भूकंप मे क्षतिग्रस्त भऽ गेल आ फेर बनाओल गेल । इ कामेश्वर सिंह संस्कृत विश्वविद्यालय के दऽ देल गेल ।
४. बेला राजमहल - इ राजा विश्वेश्वर सिंह (कामेश्वर सिंहक छोट भाय)क लेल बनाओल गेल । एकरा केन्द्रीय सरकार लऽ लेलक आ एहि मे आब डाक प्रशिक्षण केन्द्र अछि ।
५. दिलखुश बाग - इहो दरभंगा किलाक अंदर मे अछि । आब प्राय: नष्टप्राय अछि ।
६. मोती महल - इ १९३४क भूकंप मे नष्ट भऽ गेल । फेर एकर निर्माण नहि भेल । आब मोती महलक मात्र एकेटा कोठरी बाँचल अछि ।
एकरा अलावा राज दरभंगाक भारतक आनो कतेक शहर मे राजमहल छल, जेना कि -
१-राजनगर मे राज परिसर
२-नई दिल्ली मे दरभंगा हाउस (७, मान सिंह रोड, नई दिल्ली- १)
३-दरभंगा हाउस, कोलकाता (४२, चौरंगी स्ट्रीट)
४- दरभंगा मेंशन, मुम्बई
५- दरभंगा हाउस, राँची - एहि मे सेन्ट्रल कोलफिल्ड लि. कार्यालय अछि ।
६- नवलखा पैलेस, पटना - इ पटना विश्वविद्यालय के दान मे दऽ देल गेल । एकर परिसर मे एकटा काली मंदिर सेहो अछि ।
५- दरभंगा हाउस, कैथू, शिमला - लौरेटो कन्वेन्ट स्कूल, छाब्रा, शिमला- आब हिमालयन इन्टरनेशनल स्कूल
६- दरभंगा हाउस, दरभंगा घाट, वाराणसी
७- दरभंगा हाउस आ दरभंगा किला, इलाहाबाद
८- दरभंगा हाउस, दार्जिलिंग

राज दरभंगा द्वारा निर्मित प्रमुख मंदिर
कंकाली मंदिर, रामबाग, दरभंगा 
माधेश्वर मंदिर, दरभंगा
श्यामा मंदिर, दरभंगा
मनोकामना मंदिर, दरभंगा
राज राजेश्वरी काली मंदिर, मुज्जफ्फरपुर
काली मंदिर, नवलखा पैलेस, पटना
राम मंदिर, बाँस फाटक, वाराणसी
राम सीता मंदिर, अहिअरि गाँव, जिला-दरभंगा
दरभंगा मंदिर परिसर, दरभंगा
लक्ष्मीश्वरी तारा मंदिर, दरभंगा

राज दरभंगा आ भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन

महाराज लक्ष्मीश्वर सिंह बहादुर १८८५ मे भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेसक एकटा संस्थापक सदस्य छलाह । ब्रिटिश राजक प्रति अपन बफादारी निमाहैत ओ भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस के सब सँ बेसी दान देलनि । काँग्रेस पार्टी इलाहाबाद मे अपन बैसार करय चहैत छल, लेकिन ओकरा सरकार सँ कोनो आम स्थान पर बैसार करबाक लेल अनुमति नहि भेटलैक । तखन राज दरभंगा एहि स्थान के खरीद लेलनि आ काँग्रेस के ओतय अपन बैसार करबाक अनुमति देलनि । १८९२ ई. मे काँग्रेसक वार्षिक बैसार लौथेर किला मे २८ दिसम्बर के भेल, जे तत्कालीन दरभंगाक महाराज द्वारा खरीदल गेल छल । इ क्षेत्र राज दरभंगा द्वारा काँग्रेस के लीज पर दऽ देल गेल ताकि ओ एहि मे अपन बैसार कऽ सकथि । महाराज दरभंगा भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेसक बहुत पैघ समर्थक छलाह । महात्मा गाँधी महाराज कामेश्वर सिंह के अपन पुत्र सद्दृश मानैत छलाह । 

राज दरभंगाक राजा, मिथिला समाज आ मैथिली भाषा

राज दरभंगाक राजा लोकनि जाति सँ ब्राह्मण छलाह । बहुत समय सँ ज्ञानक केन्द्र हेबाक कारणें राजा लोकनि ज्ञान, कला आ हस्तकला के हरसंभव प्रवर्धित केलनि । एकर मिथिला समाज पर नीक प्रभाव पड़ल । आइयो कोनो व्यक्तिक सामाजिक हैसियत धनक बजाय हुनक ज्ञानक आधार पर मानल जाइत अछि । दरभंगा महराज आ दरभंगा राज एहि क्षेत्रक लोक द्वारा मिथिला आ मैथिलीक मूर्त रूप मानल जाइत अछि । महाराज मैथिल महासभाक वंशानुगत प्रधान सेहो छलाह । महाराज आ राज दरभंगा मैथिली भाषा आ साहित्यक पुनरुत्थान मे महत्वपूर्ण भूमिका निभेलनि । महाराज कामेश्वर सिंह प्रमुख राष्ट्रवादी हेबाक कारणे मैथिलीक संग हिन्दीक सेहो समर्थन केलनि । एहि सँ मैथिली आन्दोलनक नेता लोकनि के नाराजगी भेलनि । महाराज दरभंगा लोक सँ मैथिली लिखबा मे तिरहुताक बजाय देवनागरी लिखबाक आह्‌वान केलनि । आब लोक सभ देवनागरी लिपिक प्रयोग कऽ कऽ मैथिली लिखैत छथि आ तिरहुति लिपि के पुनरुत्थानक प्रयास भऽ रहल अछि । १९३१ मे तत्कालीन दरभंगा महाराज मैथिली विकास निधिक स्थापना केलनि । एहि सँ साहित्यक कार्य आ प्रकाशन मे तेजी आयल आ अंततः १९३७ मे मैथिली के उच्चतर शिक्षा मे मान्यता भेटल । महाराज कामेश्वर सिंह के लोकप्रियता नहि भेटलनि, सिवाय एहि के की लोक देवनागरीक प्रयोग करय लागल । ओ आम जनताक राजा हेबाक बजाय एकटा छोट विशिष्ट वर्गक नेता बनि कऽ रहि गेलाह, जिनका लग अखिल राष्ट्रवादी एजेन्डा छल । हुनक आम जन सँ विलगावक अनुमान एहि तथ्य सँ लगाओल जा सकैत अछि जे स्वतन्त्रता-पूर्व भारत मे सब सँ पैघ मानव-प्रेमी आ प्रगतिवादी दिमागक राजा हेबाक बावजूदो ओ १९५२ मे बिहार मे आम चुनाव मे हारि गेलाह । ताहि समय मे मैथिली महासभाक एकगोट सचिव जे लिखलनि से देखल जाए : “महाराज कामेश्वर सिंह पैघ राष्ट्रवादी छलाह आ भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेसक एकटा संस्थापक सेहो छलाह । आब ओ राष्ट्रीय एकताक लेल काज करैत छथि । आ तें ओ मैथिलीक दावा के स्वयं खारिज कऽ देलनि आ हिन्दीक लेल लड़लाह । हमर अपन लिपि अछि, लेकिन ओ दरभंगा मे एकटा हिन्दी प्रेसक स्थापना केलनि । ई राष्ट्रीय एकताक लेल पैघ योगदान छल, लेकिन मिथिलाक लेल हानि छल ।” एहि समय महाराज कामेश्वर सिंह ‘मिथिला मिहिर’क सेहो प्रकाशन सेहो केलनि । एकर प्रकाशन १९८०क दशक धरि जारी रहल आ तत्पश्चात एकर पुन: प्रकाशन सेहो भेल । महाराज अपन वसीयत मे मिथिला मिहिरक सतत प्रकाशनक प्रावधान केलनि, जाहि सँ एकर प्रकाशन १९०८ सँ १९८० धरि होइत रहल ।

राज दरभंगा आ मैथिल ब्राह्मण

मैथिल ब्राह्मणक राज दरभंगाक दरबार मे आदर होइत छल आ दरभंगा महाराज काशी नरेशक बहुत समान करैत छलाह । हुनक वैवाहिक सम्बंध बेतिया राज सँ सेहो छल । मैथिल ब्राह्मण मे पर्याप्त हो-हल्ला भेल जहन महाराज कामेश्वर सिंह समुद्र पार जेबाक पारंपरिक निषेधक वाबजूद इंगलैंड गेलाह । एहि बात पर मैथिल ब्राह्मण समाज दू भाग मे बँटि गेल - स्वदेशी आ विलायती । स्वदेशी ओ छलाह जे महाराजक वहिष्कारक आह्वान केलनि, किएक तँ ओ पुरान परंपरा के तोड़लनि आ विदेश गेलाह । विलायती ओ दल छल, जे महाराजक इंगलैंड यात्राक समर्थन केलनि । कतेको साल धरि मैथिल ब्राह्मण एहि मुद्दा पर बँटल रहलाह आ अंत मे सभ एकरा प्रगतिगामी कदम मानि शांत भऽ गेलाह ।

राज दरभंगा आ धर्म

दरभंगाक महाराज संस्कृत परंपराक प्रति समर्पित छलाह आ हिन्दू धर्मक अनुयायी छलाह । ओ ब्राह्मण छलाह । शिव आ काली राजपरिवारक मुख्य देवता छल । पूर्णत: धार्मिक रहलाक बावजूदो ओ लोकनि अपन विचार मे धर्म-निरपेक्ष छलाह । दरभंगाक राजमहल परिसर मे मुस्लिम संतक तीन गोट मकबरा आ एकटा छोट मस्जिद अछि । वस्तुत: दरभंगा किलाक देवाल एना बनाओल गेल अछि जे मस्जिद के नुकसान नहि पहुँचैक । मुस्लिम संतक एकटा मकबरा आनन्दबाग राजमहल के बगल मे अछि । प्राचीन हिन्दू रीति-रिवाज के पुन: शुरू करबाक उद्देश्य सँ दरभंगाक महाराज दक्षिण भारत सँ विद्वान के बजा के सामवेदक अध्ययन शुरू केलनि । महाराज रमेश्वर सिंह श्री भारत धर्म महामंडलक स्थापना केलनि आ ओ ओकर महाध्यक्ष छलाह । मंडल गैर-संरक्षक हिन्दी संगठन छल, जकर सार्वभौमिक विचार इ छल जे हिन्दी स्क्रिप्ट के सभ जाति के देल जाए । ओ आगम‍अनुसधान समितिक मुख्य प्रेरक छलाह, जेकर स्थापना अंग्रेजी आ अन्य भाषा मे तान्त्रिक पाठक प्रकाशन छल ।

राज दरभंगा आ परनामी प्रणाली

ई श्रोत्रिय परिवार मे प्रचलित छल । एहि प्रणालीक अंतर्गत श्रोत्रिय ब्राह्मण परिवार मे विवाहक मंजूरी राज द्वारा देल जाइत छल । परन्तु १९६२ मे महाराज कामेश्वर सिंहक देहांत भेलाक बाद ई प्रथा बन्द भऽ गेल ।

राज दरभंगा आ १९३४क भूकंप

१५ जनवरी, १९३४ के पूरा उत्तरी बिहार मे पैघ भूकंप आयल । ई कतेको शहर आ गाम के उजारि देलक । मुजफ्फरपुर आ दरभंगा एहि सँ बहुत प्रभावित छल । दरभंगा तँ पूर्णत: विनष्ट भऽ गेल । दरभंगा मे लगभग १५०० लोकक जान गेल आ मुजफ्फरपुर मे २००० लोकक । यद्यपि भूकंपक बाद दरभंगा के नव ढंग सँ बसेबाक प्रयास महाराज कामेश्वर सिंह केलनि, परन्तु लोक एकरा महाराज द्वारा जबर्दस्ती भूमिक अधिग्रहण मानलक आ ई काज पूरा नहि भऽ सकल । एकर बाद दरभंगा शहर मे अनेक राजमहल बनल आ संगहि अनेक सामाजिक काज भेल । एतबे नहि राज दरभंगा आन शहर मे सेहो अपन भवन बनौलनि । एहि समय मे बाजार हब के रूप मे टावर चौकक निर्माण भेल ।

राज दरभंगा आ शिक्षा

भारत मे शिक्षाक प्रसार मे राज दरभंगाक पर्याप्त योगदान छल । ओ बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, कोलकाता विश्वविद्यालय, इलाहाबद विश्वविद्यालय, पटना विश्वविद्यालय, कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय, ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय, अलीगढ़ मुस्लिम आ अन्य कतेको विश्वविद्यालयक मुख्य दाता छलाह । महाराज रमेश्वर सिंह बहादुर बनारस हिन्दू विश्वविद्यालयक निर्माण मे पं. मदन मोहन मालवीयक बड्ड सहायता केलनि । ओ बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय शुरू करक हेतु ५०००,००० रु. दान देलनि । ओ पटनाक अपन नवलखा राजमहलो पटना विश्वविद्यालय के दान कऽ देलनि आ संगहि ५००,००० टाका सेहो दान पटना मेडिकल कॉलेजक स्थापनाक लेल देलनि । कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालयक स्थापनाक लेल ओ आनन्दबाग पैलेस दान दऽ देलनि । एहिना नरगौना राजमहल १९७२ मे बिहार सरकार के दान मे दऽ देल गेल, जाहि मे ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय चलैत अछि । महाराज लक्ष्मेश्वर सिंह राज स्कूल दरभंगाक स्थापना सेहो केलनि । राज दरभंगा ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के ७०९३५ किताब दान मे देलनि । पटना विश्वविद्यालय मे मैथिलीक पढ़ौनी शुरू करेबा मे हुनक मुख्य योगदान छलनि । १९५१ मे भारतक पहिल राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसादक पहल पर मिथिला स्नातकोत्तर संस्थानक स्थापना भेल आ कामेश्वर सिंह ओहि लेल ६० एकड़ जमीन आ आम आ लीची सँ भरल एकटा बगान दान मे देलनि । महाराज दरभंगा महाकाली पाठशालाक स्थापना मे सेहो योगदान देलनि, जकर स्थापना गंगाबाई द्वारा १८३९ मे नारी शिक्षाक प्रचारक लेल भेल छल । ओ बरैली कॉलेज के सेहो दान देलनि ।

राज दरभंगा आ संगीत

दरभंगा संगीतक प्रमुख केन्द्र छल । दरभंगा राज एहि दिशा मे पर्याप्त योगदान देलक । प्रसिद्ध लोकनि राज दरभंगा सँ जुड़ल छलाह । राज दरभंगा ध्रुपदक मुख्य प्रेरक छलाह । एस.एम घोषक अनुसार महाराज लक्ष्मेश्वर संगीतक बड़ पैघ प्रेमी छलाह । राज दरभंगा उस्ताद बिसमिल्लाह खान, गौहर खान, पं. राम चतुर मल्लिक, पं. रमेश्वर पाठक, पं. सियाराम तिवारी आदि के सहायता देलनि । उस्ताद बिस्मिल्लाह खान कतेको वर्ष धरि दरभंगा मे रहलाह । राज दरभंगा मुराद अलि खान, ग्वालियर के सेहो सहयता देलनि । मुराद अलि खान प्रमुख सरोद वादक छलाह । प्रसिद्ध गायक कुन्दन लाल साह राजा बहादुरक (राजा विश्वेशर सिंह)क परम मित्र छलाह । जहन दुनू बेला राजमहल मे मिलैत छलाह तँ गजल आ ठुमरीक साज सजैत छल ।

राज दरभंगाक कंपनी

महाराज कामेश्वर सिंह पैघ उद्योगपति छलाह आ हुनका लग १४ टा कारखाना छलनि । एहि मे सँ किछुक नाम एना अछि -

न्यूजपेपर एण्ड पब्लिकेशन प्रा. लिमिटेड, वालफोर्ड - ऑटोमोबायल डीलरशिपक व्यवसाय, दरभंगा एविएशन, अशोक पेपर मील, सकरी आ पंडौल चीनी मील, रामेश्वर जूट मील, ब्रिटिश इंडिया कारपोरेशन, ऑक्टेवियल स्टील, ठाकर स्पिंक एण्ड कं. प्रा. लि., दरभंगा इन्वेस्टमेन्ट प्रा. लि., दरभंगा डेयरी फर्म (प्रा.) लिमिटेड, दरभंगा मार्केटिंग लि., तिरहुत स्टेट रेलवे आदि

राज दरभंगा आ लोक कार्य
- बंगालक अकाल मे ३००,००० पौ. सहायता ।
- महाराज लक्ष्मीश्वर सिंह अपन निधि सँ कतेको स्कूल, डिस्पेन्सरी आदिक निर्माण करौलनि, जाहि मे दरभंगाक प्रमुख छल ।
- मुजफ्फरपुर न्यायालयक निर्माणक लेल ५२ बीघा जमीनक दान ।
- अनेक तालाब आ झील खुदबाओल गेल, जाहि सँ सिंचाई मे सुविधा भेलैक ।
- महाराज लक्ष्मेश्वरक तत्परता सँ उत्तरी बिहार मे पहिल रेलवे लाईन दरभंगा आ बाजितपुरक बीच बनाओल गेल ।
- राज दरभंगा १९म शताब्दीक प्रारंभ धरि १५०० कि.मी. सड़क बनेलक ।
- अनेको धर्मशाला जेना वाराणसी मे राम मंदिर आ रानी कोठा बनाओल गेल ।
- गरीब आ विपन्न लोकक लेल घरक निर्माण भेल । 
-मुंगेर जिला मे विशाल जलाशयक निर्मण भेल ।

राज दरभंगा आ खेल

राज दरभंगा विभिन्न खेल के प्रोत्साहित केलक । लहेरियासरायक पोलो ग्राउंड ओहि समयक महत्वपूर्ण स्थल छल । कलकत्ताक एकटा प्रमुख पोलो टूर्नामेंट मे दरभंगा कप प्रदान कयल जाइत अछि । राजा विशेश्वर सिंह अखिल भारतीय फूटबौल एसोसियनक संस्थापक सदस्य छलाह । राजा विश्वेशर सिंह राय बहादुर जे.पी. सिन्हाक संग १९३५ धरि एहि फेडरेशनक मानद सचिव छलाह । माउंट एवरेस्ट पर पहिल चढाई १९३३ मे आयोजित भेल, जेकर आतिथ्‍य बनैलीक राजाक संग महाराज कामेश्वर सिंह सेहो कयने छलाह ।

राज दरभंगा आब

महाराज कामेश्वर सिंहक मृत्युक बाद राज दरभंगा उत्तराधिकारी के बिना रहि गेल आ राज परिवारक आब दरभंगा आ मिथिला क्षेत्र मे कोनो खास प्रतिष्ठा आ आदर नहि रहि गेल अछि ।