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छोट लोक - सुभाष चंद्र 

छोट लोक धरती पर जन्मैत छैथदूबि जकाँ बढ़ैत छथिपयर सँ दबाओल जाइत छैथआ कोनो चर्च के मारल जाइत छैथ !पैघ लोक आकाश मे जन्मैत छैथआकाशे मे रहैत छैथजमीन की होइछओ नहि जनैत छैथ !बाचल, मध्यमजे नहि कर्ता आ नहि पाचकदूनू अधिकार सँ तिरोहितओ उगैत छैथ,बढ़ैत छैथ लत्ती जकाँ आओर, सतह पर रहैत छैथ अचेतन मेसपना देखैत संग जूझैत छैथ स्वयं सँ अंतरिक्ष सँ आगाँ नहि जा पबैत छैथ !त्रिशंकु जकाँ बनिईच्छाक संगस्वयं अपन स्वप्न केंकेंद्र बिंदु बनैत छैथ !!

बदलत कोना? -रूपेश कुमार झा 'त्योंथ' 

लोक मरैत रहत सदैव, आतंकवादीक गोली सँ।
जनता ठकाइत रहत सदैव, क्रूर राजनेताक बोली सँ।
गरीब तंग रहत सदैव, पेटक किलकिलाइत भूख सँ।
स्त्री दबायल रहत सदैव, पुरुखक चमचमाइत बूट सँ।
सवर्ण डेराइत रहत सदैव, डोमक थूक सँ।
मिथिला दहाइत रहत सदैव, बेंगक मूत सँ।
बेटा बिकाइत रहत सदैव, मोटगर दहेज़ सँ।
बेटी जरइत रहत सदैव, आगिक लपेट सँ।
राशन घटल रहत सदैव, नहि होयत किछु भाषण सँ।
लोकतंत्र मे मारामारी रहत सदैव, हटय चाहत ने क्यो सिंघासन सँ।
देश सहमल रहत सदैव, कलियुगी रावण ओ कंस सँ।
किछु लोक चाहैत रहत सदैव, बचय समाज विध्वंस सँ।
अपने मे सब लड़ैत रहत सदैव, नहि होयत किछु झगरला सँ।
ई थेथर समाज एहने रहत सदैव, नहि बदलत बात छकरला सँ।

बुद्धि नहिए- संतोष कुमार मिश्र 

एक बेर यादब लोभ लालच मे
करबौलक बजेट निकासा
अपन जेबी नीक सँ भरलक
तोरलक मैथिलक आशा
कहै हम मैथिल छी।

चारि विदेशी छह गोटे देसी सँ
खतम कएलक सम्मेलन
ककरो चुरा दही, ककरो भात
खतम कएलक अन्वेषण
कहै हम मैथिल छी।

बैनर सेहो गलतीए लिखल
कहै हम छी ठीकदार
लिख लौढा, पढि पाथ र सबहे
बुझै अपना के बुधियार
कहै हम मैथिल छी।

बिना योजना के ओ सम्मेलन
रहि गेल ओ हरमुनिया के धुनि मे
फूटि गेल ढोलक के आवाज संगे ओ
चलि गेल ओ आयोजक के भूर मे
कहै हम मैथिल छी।

श्रवीनमा गंगेशवा जे किछु कएलक
चलि गेल सबहक पेट मे
भाषा पर खोज करौलक
चलि गेल नदी कातक खेत मे
कहै हम मैथिल छी।

नहि त' अपन बापके भेलै
नहि भेलै ओ बेटा के
मात्र किछु बजेटक खातिर
मिथिला परली चपेटा मे
कहै हम मैथिल छी।

नहि त' धोती पहिरौने मैथिल होएब
नहि पाग ककरो पहिराकs
अपनेमे सभ के फोरिक राखत
ल' जाएत सबहे ओ सझियाक'
बुद्धि नहिए, कहै हम मैथिल छी।