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स्टेशन पर’क हरियर दुबि आ लाल गुलमोहर                                                                                 लेखक-आदि यायावर

(१)रेखा केँ नइँ जानि किएक मोन भऽ गेलनि जे स्टेशन पर जा केँ कनि काल’क लेल बैसल जाए. किछुए दिन’क गप्प अछि फेर तेँ ओ एहि स्टेशन केँ छोड़ि के चलि जेतीह, आ तकर बाद फेर सँ एतय एबाक कोनो प्रयोजन नहिँ. पछिला तीन साल ओ कोन तरहेँ काटने छलीह से वैह टा जानैत छथि. सरकारी क्वाटर सँ स्टेशन पहुँचबा मे मात्र तीन मिनट’क समय लागैत छलनि. घरे पर बैसि ओ की कऽ सकैत छलीह. बहुत सँ बहुत टी.वी. आन कऽ केँ ओ कोनो सिरीयल’क रीपीट टेलीकास्ट देखि सकैत छलीह. टीवीयो देखबा मे आब कोनो मोन नइँ लागैत छलनि. जल्दी सँ एहि नरक सँ छुटकारा भेटनि तऽ जा केँ गंगा नहा लेतीह.
नरायनपूर-मुरली स्टेशन. बहुत दिन पहिने सरकार नरायनपूर आ मुरली दुनू गाम केँ खुश करबाक क्रम मे एकर नाम नरायनपूर मुरली स्टेशन राखि देने छल. एहि स्टेशन पर एक दिस सँ मात्र तीन टा ट्रेन आबैत छल, तेँ कुल मिला केँ दिन भरि मे मात्र छओ टा ट्रेन’क आवाजाही छल. सलवार सूट केँ फेरि साड़ी पहिर बिना कोनो मेक-अप केने ओ स्टेशन पहुँचि गेलीह. 
रेलवे स्टेशन हमर हृदय’क करीब रहल अछि. बचपन मे लागैत छल जे छोटा बाबु दुनियाँ सबसँ पैघ आफिसर होइत छैक. बचपन मे इच्छा छल जे पैघ भऽ केँ ट्रेन’क गार्ड बनब, जिनकर ईशारा सँ हजारो टन वाला ट्रेन अपने चलि दैत छैक. कतेको बेर हम सुपौल जिला’क अन्तर्गत सरायगढ़ रेलवे स्टेशन पर गुलमोहर’क गाछ निहारि चुकल छी. प्रस्तुत कथा, बचपन मे स्टेशन पर पसरल प्राकृतिक छटा सँ उत्पन्न प्रेम’क प्रतिक्रिया मात्र थीक. आशा अछि २०१० मे लिखल पहिल कथा केँ दर्शक लेखक पसन्द करताह. 



स्टेशन ओहि लगपास’क सब सँ सुन्दर स्थान छल. रेखा केँ दूरहि सँ स्टेशन’क बाउन्ड्री’क कतार मे गुलमोहर’क गाछ देखा पड़लनि. लाल लाल फूल सँ आच्छादित पचासो टा गाछ एहि वीरान स्टेशन केँ आवश्यकता सँ बेसी मनोरम बना रहल छल. लग एला पर कोयली आ कौआ दुनू’क अवाज सुना पड़लनि. साँझ होमय वाला छल आ दोसर चिड़ै चुनमुनी जे ओहि सबटा गुलमोहर’क गाछ मे अपन खोता लगने छल अपन अपन खोता मे वापस आबि रहल छल. चिड़ै चुनमुनी’क कोलाहल सँ लागि रहल छल जे ओ अपन-अपन खोता केँ बिसरि गेल अछि आ "ई हमर" तऽ "ओ हमर" कहबाक क्रम मे वाद विवाद कऽ रहल अछि. बीच बीच मे कोयली’क कूक बाँकी कोलाहल केँ दबा दैत छल. लगभग तीस फीट चाकर प्लेटफार्म’क आधा भाग सीमेन्ट’क आ दोसर आधा दस फीट हरियर हरियर दुबि सँ भरल छल. दुबि वाला भाग मे किछु किछु दुरि हँटि हँटि केँ लकड़ी’क बेन्च छल. ट्रेन एबा मे एखन एक घँटा छल आ सबटा बेन्च बिल्कूल वीरान छल. मुख्य स्टेशन परिसर’क लऽग मे एकटा चाह’क आ दू टा पान’क दोकान छल. चाह’क दोकानदार अपन कोयला वाला चुल्हा केँ दोकान’क आगू मे राखि आगि पजारि रहल छल. एहि सँ निकलल धुआँ स्टेशन परिसर’क प्राकृतिक सुन्दरता’क लेल उपयुक्त नइँ छल. मुदा एक छोर पर ठाढ़ भेल रेखा जखन अपन नजरि एक किलोमीटर नम्हर प्लेटफार्म पर देलथिन्ह तँ मुँह सँ हठाते निकलि गेलनि, "अद्भूत, विहँगम, अतिसुन्दर". रेखा बी.ए. पास केने रहथि आ साहित्य मे आनर्स. साहित्य आ कला’क प्रेमी रहैथ. अद्भूत आ विहँगम शब्द हुनकर साहित्य प्रेम केँ उजागर करैत छलनि. साहित्य प्रेमी केँ प्राकृतिक सुन्दरता सँ बेसी आओर की चाही.
प्लेटफार्म पार कऽ केँ ओ प्रतीक्षा कक्ष गेलथि. ओतय मात्र तीन टा यात्री बाट ताकि रहल छल. दोसर दिस टिकट काउन्टर छल जाहि पर लिखल छल, "यह खिड़की ट्रेन आने के एक घँटा पहले खुलती है और पाँच मिनट पहले बन्द हो जाती है". बहुत देर धरि ओ सोचैत रहलीह जे ट्रेन एबा सँ पाँच मिनट पहिने टिकट खिड़की किएक बन्द भऽ जैत छैक. पुनः याद एलनि जे स्टेशन पर मात्र चारि टा कर्मचारी नियमित रुप सँ कार्य करैत छैक. स्टेशन मास्टर यानी बड़ा बाबु जक्शन पर रहैत छैक आ सप्ताह मे मात्र दुइ दिनक लेल एहि स्टेशन पर आबैत छैक. रेखा’क पतिदेव रमेश जे असिस्टेन्ट स्टेशन मास्टर’क (मतलब छोटा बाबु) पद पर तैनात छलाह नियमित रुप सँ क्न्ट्रोल रुम, बुकिन्ग काउन्टर, आ सिगनल’क जिम्मेदारी सम्हारैत रहैत छलाह. आ बाँकी एकटा खलासी आ एकटा चपरासी. छोटा बाबु’क जिम्मेदारी बहुते महत्वपूर्ण छल. दोसर कर्मचारी नइँ रहबाक कारणेँ ट्रेन एबा सँ पाँच मिनट पहिने खिड़की बन्द कऽ केँ ओ सिगनल डाउन करबाक लेल चलि जैत छलाह.
रेखा’क पति रमेश बहुत दिन सँ कहैत छलनि जे भोर साँझ केँ स्टेशन पर आबि जेबाक लेल. एतेक सुन्दर आ मनोरम स्थान दोसर ठाम नइँ भेट सकैत छलनि. स्थान ठीके बहुत मनोरम छल. भोर आ साँझ केँ प्राकृतिक सुन्दरता कनि आओर बेसी बढ़ि जैत छल. नइँयोँ जानि बुझि के, मुदा दिमागक एक कोनटी मे हुनका ई गप्प बैसल छलनि जे स्टेशन सन दिब्य स्थान पूरे ईलाका मे नइँ. टिकट काउन्टर फुजि गेल छल. वेटिँग रुम’क एक छोर सँ रेखा केँ खिड़की’क दोसर कात अपन पति’क व्यस्त मुँह देखा पड़ि रहल छलनि. किछुए काल मे लोक’क आवाजाही बढ़ि गेल. टिकट काउन्टर पर लाइन लागि गेल. रेखा वेटिँग रुम’क सार्वजनिक बेन्च पर बैसि अपन अतीत’क बारे मे सोचय लागलीह. 
(२) 
रेखा एक मध्यमवर्गीय मुदा प्रगतिशील परिवार सँ छलीह. हुनकर बाबुजी एक साधारण किरानी’क नौकरी सँ अपन मेहनत आ अपन मेधा’क बुता सँ आई केन्द्रीय सँस्थान मे आफिसर पद पर तैनात छलाह. बहुत कमे होइत छैक जे परिवारिक जीवन यापन करैत लोक अपन पढ़ाई लिखाई आगु जारी राखैत छैक. मुदा ओ डीग्री लैत गेलाह आ आई किरानी सँ आफिसर बनि गेलाह. दू टा बेटी छलनि आ एकटा बेटा. अपने गाम’क सरकारी स्कूल मे पढ़ने छलाह मुदा धिया पूता केँ कोनवेन्ट स्कूल मे अन्ग्रेजी मीडियम सँ पढेलाह. बेटी सब बेटा सँ बेसीए तेज छलनि.
समय बीतला पर जखन रेखा ग्रैजुएशन कऽ लेलीह तऽ हुनका रेखा’क विवाह’क चिन्ता सतबे लागलनि. रेखा सुन्दर, सुशील, गृह कार्य मे दक्ष, आ कान्वेन्ट एजुकेटेड छलीह. आधुनिक समाज मे एक योग्य कन्या’क सबटा गुण नेने. रेखा अपन विवाह’क पुरा जिम्मेदारी अपन बाबुजी पर सौँपि देने छलीह. हुनका विश्वाश छलनि जे ओ जे करताह से नीके.
रेखा केँ अपन बाबुजी’क केवल एकेटा चीज पसन्द नइँ छलनि. हुनकर बाबुजी चहैत छलथिन जे वर सरकारी नौकरी करए वाला होमय. रेखा’क मोन छलनि जे लड़का प्राइवेट नौकरी करए वाला आ मेट्रोपोलिटन सिटी मे स्थापित होएबाक चाही. जतय हुनकर बाबुजी सरकारी नौकरी केँ स्थाई, पेन्शन देमए वाला, मेडिकल आ अन्य अनगिनत सुविधा देबय वाला आ बिना कोनो छुट्टी’क समस्या वाला बुझैत रहथिन, प्राईवेट नौकरी केँ ओ अस्थाई, आवश्यकता सँ बेसी मेहनत’क डिमान्ड वाला, दरमाहा’क अतिरिक्त कोनो अन्य सुविधा नइँ देबय वाला, कखनहुँ निकालि देबय वाला, आ सबसँ बेसी अप्रतिष्ठित लागैत छलनि.
एक दिन रेखा आ हुनकर बाबुजी मे सरकारी आ प्राईवेट नौकरी मुद्दा पर बहस भऽ गेल छलनि. रेखा कहने छलथिन, "प्राइवेट नौकरी मेहनत करए वाला’क लेल अछि, सरकारी नौकरी कामचोर’क लेल. प्राइवेट नौकरी मेधावी लोक के दिन दुना राति चौगूना हिसाब सँ आगू बढ़बैत छैक. अन्त मे प्राईवेट कम्पनी मे काज करए वाला लोक स्मार्ट आ सरकारी नौकरी करए वाला अन-स्मार्ट होइत छैक".
हुनकर बाबुजी’क जवाब छलनि, "सरकारी नौकरी बिना सँघर्ष केने नइँ भेटैत छैक. बहुत मेहनत आ लगन चाही. जे लोक मेहनत नइँ करय चाहैत छथि ओ प्राइवेट दिस चलि जैत छथि. तेँ असल कामचोर तऽ प्राइवेटे वाला होइत छैक..."
रेखा’क जवाब छलनि, "सरकारी नौकरी करए वाला एगारह बजे आफिस आबैत छैक, ठीक पाँच बजे फेर वापस. भगवान मनुष्य केँ काज करबाक लेल बनौने छैक. काज करबाक मतलब होइत छैक चलैत रहब. रुकि गेनाइ बुझु मृत्युक प्रतीक. नीको लोक सरकारी नौकरी मे एलाक बाद ओहने भऽ जाइत छैक. एहेन लोक आलसी आ समाज आ देश’क प्रगति मे बाधक होइत छैक. आ एखन धरि हम सरकारी नौकरी मे अनैतिक काज भ्रष्टाचार’क गप्प नइँ केने छलहुँ."
दुनू लोकनि अपन अपन जगह ठीक. आम आ लताम मे कोन नीक आ कोन खराप से व्यक्ति विशेष पर निर्भर करैत छैक. आमक अपन महत्व मुदा एकर मतलब कथमपि नइँ जे लताम खराप फल छैक. दोसर गप्प जे रेखा’क बाबुजी, "रेखा’क गप्प" सँ सहमति छलाह. मुदा समाजे एहेन छल जे सरकारी नौकरी केँ बेसी महत्व दैत छल. रेखा’क गप्प हुनका नीक लागनि मुदा ओ कहियो मोन नइँ बना सकलाह जे रेखा’क विवाह एक प्राईवेट नौकरी करए वाला व्यक्ति सँ कऽ देल जाए.
रेखा पढ़ल लिखल आधूनिक कन्या छलीह. ओ एहेन समाज मे रहैत छलीह जतय लड़की’क जीवन सँगी हरदमे हुनकर माँ बाप’क पसन्द सँ होइत छलैक. ओ अपन बाबुजी केँ आदर्श मानैत छलीह आ हुनका सँ बहुत प्रेम करैत छलीह. प्रेम एक मजबुरी’क नाम सेहो थीक. ओ अपन बाबुजी सँ एतेक प्रेम करैत छलीह जे अपन जीवन सँगी केहेन हो तकर फैसला अपना पर नहि मुदा अपन बाबुजी पर छोड़ि देने छलीह.
किछु समय’क बाद रेखा’क विवाह हाजीपूर मे पदस्थापित, एम.एस.सी. फर्स्ट क्लास मे पास, रेलवे मे असिस्टेन्ट स्टेशनमास्टर पद पर कार्यरत रमेश सँ भऽ गेलनि.
विवाहोपरान्त, रमेश’क क्वालिफिकेशन हुनका नीक लागलनि. व्यक्त्वि सँ प्रभावित से छलीह. सब किछु नीक लागलनि, मुदा एकटा गप्प हरदम खटकैत रहलनि. हुनका सरकारी नौकरी पसन्द नइँ छलनि. दोसर गप्प जे रमेश’क मेधावी कैरियर देखि, आ मेहनत करबाक ऊहि देखि, हुनका होइत छलनि जे यदि ओ कोनो सोफ्टवेयर कम्पनी मे नौकरी करतथि तऽ हुनकर तरक्की खुब भेल रहतनि. कोनो भाजेँ मोन मारि केँ ओ जीवन यापन करैत छलीह. मुदा तखन तऽ हद भऽ गेलनि जखन रमेश’क ट्रान्सफर एकटा गाम घरक छोटका स्टेशन नरयणपूर-मुरली मे भऽ गेलनि.
रेखा’क सँगी लोकनिक विवाह बँगलोर’क सोफ्टवेयर इन्जीनियर, तऽ पुणे’क बहुराष्ट्रीय कम्पनी मे काज करय वाला लड़का सँ भेल छल. हाजीपूर धरि ठीक छल, मुदा नारायणपूर मुरली मे "छोटा बाबुक" पद हुनकर कोनो दुखःद स्वपनो मे नइँ आयल छलनि. 
(३)
नरायणपूर आ मुरली दू अलग अलग गाम छल. दुनू गाम’क अलग पँचायत, अलग मुखिया आ अलगे व्यवस्था, मुदा एकेटा रेलवे स्टेशन. दुनू गाम मे मिडिल स्कूल केँ छोड़ि बाँकी कोनो सरकारी आफिस नइँ. दुनू गाम मे रमेश जे एम.एस.सी. प्रथम श्रेणी सँ पास छलाह, हुनका सँ बेसी किओ पढ़ल लिखल नइँ. कोनो भी लोक’क तीन दृष्टि सँ सम्मान भेटैत छैक. पहिल जे ओ लोक केहेन छथि, हुनकर व्यक्तित्व केहेन छनि. दोसर ओ कतेक पढ़ल लिखल व्यक्ति छथि. तेसर जे ओ कोन पद पर काज करैत छथि. दुनू गाम मिला केँ रमेश सँ बेसी नइँ तऽ किओ पढ़ले लिखल छल, नइँयेँ हुनका सन किनको व्यक्तित्वे छलनि आ दुनू गाम’क एक मात्र सरकारी आफिस (रेलवे स्टेशन) मे ओ सर्वोच्च पद पर कार्य कऽ रहल छलाह. तेँ दुनू गाम’क लोक हुनकर एत्तेक सम्मान करैत छलनि जे दोसर ठाम रमेश सोचियो नइँ सकैत छलाह. गाम मे कोनो भोज’क आयोजन हो, रमेश केँ पहिल निमन्त्रण पड़ैत रहनि. भगवानो’क पूजा’क मुख्य अतिथि वैह रहैत छलाह. गाम घर मे कोनो परिवारिक झगड़ा भऽ गेल हो तऽ रमेश’क फैसला सर्वमान्य रहैत छल. किनको अपन धिया-पूता’क कैरियर सम्बन्धी सलाह मशविरा’क लेबाक हो रमेश लऽग लोक हाजिर भऽ जैत छलनि.
रमेश एत्तेक सम्मान’क उम्मीद नइँ करैत छलाह. गाम’क लोक मे आपस मे इर्ष्या द्वेष बहुत सामान्य गप्प छल. मुदा रमेश’क के देल गेल ओ एहेन सम्मान छल जे दबाव मे नइँ मुदा प्राकृतिक रुप सँ लोक’क बिल्कुल हृदय सँ निकलल सम्मान छल. इर्ष्या इर्ष्या केँ जन्म दैत छैक, द्वेष सँ द्वेष बढ़ैत छैक, आ एक प्रेम, दोसर प्रेम केँ बढ़बैत छैक. गाम’क लोक सँ भेटल प्रेम सँ रमेश भाव विह्वल भऽ जाइत छलाह. ओ वैह उत्साह सँ जवाब दैत छलथिन. जहिना लोक हिनका सँ प्रेम करैत छलनि, इहो दोसर लोक सँ ओहिना प्रेम करय लागलथिन. किछु परिवार’क तऽ अभिन्न अँग बनि गेल छलाह. कखनो कखनो सोचैत छलाह जे लोक पाइ किएक कमाबैत छैक? अपन आ अपन परिवार’क लालन पालन लेल, अपन मोन’क सँतुष्टि’क लेल. एहि सरकारी नौकरी मे हुनका एत्तेक दरमाहा भेट जैत छलनि जाहि सँ ओ अपन परिवार’क जिम्मेदारी आ अपन भविष्य केँ सुरक्षित कऽ सकैत छलाह. नरायनपुर मुरली मे खर्चे की होएत छैक. खेबा पीबा’क बाद मे सबटा पैसा बचिए जैत छैक. तरकारी तीमन तऽ गाम’क लोक एत्तेक दऽ दैत छलनि जे आई धरि कहियो कीनबाक काजे नइँ पड़लनि. दुध दही एत्तेक सस्ता आ शुद्ध. एक लोक’क काज पड़ला पर दस लोक बिना कहने उपस्थित भऽ जैत छलनि. मोन मे होइत छलनि जे ओ धन्य छथि जे हुनकर ट्रान्सफर एहि गाम’क रेलवे स्टेशन पर भऽ गेलनि.
मुदा हुनकर पत्नी रेखा’क अलगे सोच छलनि. हुनकर सँगी सहेली सब पैघ शहर मे स्थापित छल. कहियो कहियो हुनका लोकनि’क फोन आबैत छलनि. बँगलोर आ पुणे’क गप्प सुनि केँ ओ हतोत्साहित भऽ जैत छलथिन. सोचैत छलथिन, हुनकर उम्रे कतेक भेल छनि. पचीस वर्ष मे तीन महिना कमे. ओ सोचैत रहथिन, जे ई यैह उम्र थीक जाहि मे लोक शौपिँग माल घुमैयऽ, जाहि मे लोक मल्टिप्लेक्स मे सिनेमा देखैय’, साँझ मे हाथ मे हाथ दऽ सड़क पर घुमैय’, रेस्टौरेन्ट मे खाना खैय’, कोनो काफी’क दोकान पर बैसि, एक कौफी केँ डेढ़ घँटा मे पीबैय’. जाहि उम्र मे लोक नवविवाहित जीवन’क उत्साह’क चरमोत्कर्ष पर रहैत छैक ओहि मे गाम’क झगड़ा’क निपटारा मैँयाँ जेकाँ करैत छैथ. एहेन उम्र जाहि मे प्रति-पल बदलैत महानगर’क मायावी बदलाव’क गवाह बनैत छथि, ओहि उम्र मे ओ गाम’क गोहाली सँ निकलल धुआँ सँ तृप्त होइत छथि. ओ अपना आप केँ जहिया कहियो अपन सखी-सहेली लोकनि सँ तुलना करैत छलथिन मोन अवसादित भऽ जैत छलनि. 
(४) 
रमेश केँ देखबा मे आएल जे सदिखन उत्साहित रहय वाली रेखा क्रमशः उदास रहय लागलीह. पहिने तऽ ओ रमेश केँ अपन ट्रान्स्फर’क लेल चरियाबैत रहैत छलीह, मुदा बाद मे ओ कहनायो छोड़ि देलथिन. रमेश केँ गाम’क लोक सँ बहुत प्रेम भेटलनि, मुदा जाहि प्रेम’क आशा नइँ अपितु जरुरत रहनि ओ प्रेम दिनानुदिन कम होइत गेलनि. जखन बाँकी कोनो समाधान नइँ भेटलनि तऽ ओ एक दिन रेखा केँ आश्वासन देलथिन जे ट्रान्सफर करबाक लेल यथासम्भव प्रयास करताह.
दुनियाँ मे कोनो एहेन चीज नइँ, जे प्रयत्न केला सँ सम्भव नइँ हो. कनि भाग-दौड़ आ किछु पैसा खर्चा भेलाक बाद रमेश’क ट्रान्सफर’क आर्डर आबि गेलनि. हुनकर नव पोस्टिँग कलकत्ता मे भेलनि. रेखा’क हेराएल खुशी पुनः वापस आबि गेलनि. रेखा के भेलनि जे नइँ बँगलोर आ पुणे तऽ कम सँ कम कलकत्ता तऽ एहि नरायनपूर-मुरली सँ नीके होएत. कलकत्ता’क नाम तऽ महानगरे मे आबैत छैक. बल्कि किछु प्रसँग मे कलकत्ता बँगलोर सँ नीके. जतय महानगर’क प्रत्येक अवयव कलकत्ता मे उपस्थित छैक ओ बँगलोर सन महग नइँ छैक. वैह शौपिँग माल, वैह मल्टिप्लेक्स, मेट्रो ट्रेन, विक्टिरिया पैलेस, एसप्लैनेड’क मारकेट आ चौबीस घँटा चहल पहल. ट्रान्सफर’क आर्डर सुनि हुनकर मोन रोमान्चित भऽ गेलनि.
रेखा आब सामन्य रहय लागलीह. रमेश’क देख-भाल नीक सँ करय लागलीह. हुनका कखनहुँ कखनहुँ मोन मे कचोट होएत छलनि जे हुनके खातिर रमेश केँ एतेक फेरा लागि गेल छनि. नइँ तऽ ओ कतेक बढ़ियाँ सँ एडजस्ट भऽ गेल छलैथ. मोने मोन ओ रमेश केँ आओर बेसी प्रेम करए लागलीह. रमेश’क कोनो बात काटैक हुनका हिम्मत नइँ होएत छलनि.
एहि प्रत्येक बदलाव केँ रमेश मोने मोन अनुभव कऽ रहल छलाह. हुनको नीक लागैत छलनि. मुदा महानगर’क बात सोचि ओ डरा जैत छलाह. एतय एक लोक’क जरुरत भेला पर एक दर्जन लोक उपस्थित रहैत छल. कलकत्ता मे दिन भरि रेखा एकसरि बैसल रहतीह. किओ अप्पन लोक बात करबाक लेल नइँ भेटतनि. तबीयत केहनो रहनि काज करैये पड़तनि. एहि गाम मे छोटा बाबु सन क्लर्कियल नौकरी कैरतो हुनकर एत्तेक इज्जत रहैत छलनि जे कलकत्ता मे पैघ सँ पैघ आफिसर केँ नइँ भेट सकैत छल. एतय प्रत्येक पावनि त्योहार केँ रेखा आ रमेश बहुत नीक सँ मनबैत छलैथ. गाम पर किनको घर मे भगवानो’क पुजा बिना हिनका लोकनि’क उपस्थिति’क सम्पन्न नइँ होएत छलनि. ओतय करोड़ो लोकक बीच मे ओ लोकनि बिल्कुल हेराएल रहताह. रमेश जतेक सोचैत छलथिन हुनका ओतेक डर लागैत छलनि. हुनका एक्के टा चीज मोन केँ प्रसन्न करैत छलनि, रेखा’क अति उत्साहित सुन्दर आ दिव्य मुखमण्डल. विवाहित जीवन एक अघोषित समझौता’क नाम थीक, हुनका आब नीक सँ बुझि मे आबि रहल छलनि. 
(५)
रेखा वेटिँग रूम’क कोनटी वाला बेन्च पर बैसल ई सब गप्प सोचि रहल छलीह. गाड़ी आबए मे मात्र पाँच मिनट छल. रेखा केँ देखा पड़लनि जे रमेश टिकट वाला खिड़की केँ बन्द कऽ चुकल छलाह. रेखा’क ध्यान फेर सँ ओहि खिड़की’क उपर मे लिखल लाईन पर चलि गेलनि, "यह खिड़की गाड़ी आने के एक घँटे पहले खुलती है और गाड़ी आने के पाँच मिनट पहले बन्द हो जाती है". ओ देखि रहल छलीह जे सिगनल’क चाभी लऽ रमेश स्टेशन परिसर सँ निकलि चुकल छलाह. यात्रीगण सब प्लेटफार्म पर ट्रेन’क बाट ताकि रहल छल. सबक किओ रमेश दिस आशा’क नजरि सँ देखि रहल छल, मानु रमेश’क हाथ मे सिगनल देबा’क चाभी नइँ, अपितु समुचा ट्रेन’क चाभी हो, जेना ट्रेन रमेश’क ईशारा पर चलैत हो.
किछुए देर मे रमेश सिगनल दऽ केँ लाल-हरियर रँग’क लालटेन लऽ केँ ठाढ़ छलाह. छोट स्टेशन’क इएह नीक गप्प. छोटा बाबु सर्वे सर्वा. टिकट काटबा’क हुनके जिम्मेदारी, सिगनल डाउन करबाक हुनके जिम्मेदारी, आ लाल हरियर झँडा आ लालटेन देखेबाक हुनके जिम्मेदारी. बेसी जिम्मेदारी निर्वाह केला सँ बेसी सम्मान भेटैत छैक. यैह कारण छल जे मुरली-नारायणपूर दुनू गाम’क लोक अपन स्टेशन पर’क छोटा बाबु केँ बहुत सम्मान करैत छलनि.
ट्रेन आबि चुकल छल. पान वाला’क दोकान’क आगू मे राखल कोयला’क चुल्हा सँ धुआँ निकलनाई बन्द भऽ गेल छल. ओहि चुल्हा सँ आगि दह-दह कऽ केँ जरि रहल छल. चाय बेचय वाला छोटू जोर जोर सँ चीकरि रहल छल, चाय, चाय, चाय. झाल मुरही वाला ट्रेन सँ निकलि प्लेटफार्म पर आवाज लगा रहल छल, "बारह मासाला तेरह स्वाद, झाल मुरही की है अनोखी बात". रेखा देखलनि ट्रेन सीटी दऽ रहल छल आ स्टेशन सँ नहुँए नहुएँ ससरि रहल छल. जे यात्री उतरि चुकल छल ओ बारी बारी सँ रमेश केँ "प्रणाम छोटा बाबु!" कहि क्रमशः बाहर जा रहल छल. ओहि मे सँ एकटा आदमी रमेश सँ बात करय लागल. हुनका देखि किछु आओर लोक रुकि गेल. किछुए देर’क बाद ओतय दस बारह लोक’क जमघट लागि गेल. सब किओ मिलि रमेश केँ गोला बना केँ घेरि नेने छल. रेखा दुरहिँ सँ लोक सभ’क बात सुनबाक कोशिश कऽ रहल छलीह.
ओहि मे सँ एक आदमी बाजि रहल छल, "ई कोना भऽ सकैत छैक, लागैत अछि किओ अहाँ के "किछु" कहि देलक अछि, हमरा एक बेर नाम बताऊ, अहाँ के अनुचित कहए वाला केँ थूक फेकि केँ चाटय पड़तनि". दोसर लोक कहैत छलनि, "जे यदि हमरा सँ कोनो गलती भऽ गेल होमय तऽ कहु". तेसर लोक कहैत छलनि जे "मेम साहेब केँ कोनो दिक्कत भेल हो त कहल जाए, हम सब मिलि केँ समस्या’क समाधान कऽ देबनि". रमेश’क सब लोकनि केँ एक्केटा जवाब छल, "एतय रेखा’क तबीयत नीक नइँ रहि रहल छलनि तेँ हम ट्रान्स्फर करा रहल छी. 
(६) 
ई पहिल बेर छल जखन रमेश अपन ट्रान्सफर’क गप्प गाम’क लोक केँ कहने छलथिन. रेखा बाँकी लोक केँ रमेश सँ बात करैत देखि चुकल छलीह. ओ प्रत्येक लोक हुनकर ट्रान्सफर सँ आश्चर्यचकित छल. हुनका लोकनिक प्रतिक्रिया मे आग्रह कम आ अधिकार बेसी छल. रेखा केँ भेलनि जे ओ लोक एहेन मुँह बनौने छल जे रमेश हुनका लोकनि केँ पुछने बिना अपन ट्रान्सफर किएक करा लेलैथ. रेखा केँ खराप लागलनि. अपन जिद्द केँ सर्वथा उचित ठहराबे लागलथिन. मोन मे भेलनि जे देहात’क लोक असभ्य होइत छैक. कोनो भी दोसर लोक’क व्यक्तिगत जीवन मे टाँग अड़ेबाक आदत रहैत छैक.
रमेश रेखा’क मुड केँ निहारि चुकल छलाह. जखन बाँकी लोक सब चलि गेल, तखन रेखा’क मोन बहलेबाक’क लेल कहलथिन, "देखु ने गुलमोहर’क गाछ केहेन लागि रहल छैक, एक्को टा पात नइँ देखा रहल छैक, सगरे फुले-फुल, मुदा किछुए दिन’क बाद एहि मे पतझड़ आबि जायत. नइँ पाते रहत आ नइँए फुले".
"हाँ से ईहो गुलमोहर’क गाछ हमरे लोकनिक ट्रान्सफर बाट ताकि रहल छैक, अन्यथा आब तऽ पतझड़’क टाइम आबि गेल छैक", रेखा’क जवाब छलनि.
तपाक सँ रमेश कहल्थिन, "अहाँ मुड बहुत रोमान्टिक लागि रहल अछि".
"नइँ एहेन कोनो बात नइँ छैक. हम पछिला एक घँटा सँ प्लेटफार्म केँ निहारि रहल छलहुँ. प्लेटफार्म पर आधा भाग मे हरियर हरियर दुबि आ कात लागल अनगिनत गुलमोहर’क गाछ. ई हरियर आ लाल’क समावेश निष्ठूर-सँ-निष्ठूर लोक केँ कवि बना दऽ सकैयऽ", रेखा अपन बात केँ कतेको तरीका सँ साबित करबाक चेष्टा केलथिन.
रमेश’क हाजिर जवाब छल, "ई किलोमीटर धरि पसरल हरियर दुबि आ कात लागल गुलमोहर’क गाछ, आई कतेको दिन सँ छल, मुदा आई पहिल बेर अहाँ अनुभव केलहुँ, तेँ हम कहैत छी, आई अहाँ बहुते रोमान्टिक मुड मे छी"
रमेश देखलथिन जे रेखा लजा गेल छलथिन. गप्प एतहि नइँ रुकि जाए ताहि लेल कहलथिन, "रोमान्टिक’क मतलबे प्रकृति-प्रेम सेहो होइत छैक, अहाँक प्रकृति प्रेम हमरा नीक लागल" 
(७) 
गप्प करैत करैत रेखा आ रमेश घर गेलैथ. गाम’क लोक अपन अपन गाम. मुदा साँझे मे रमेश’क ट्रन्स्फर’क चर्चा आगि जेकाँ पसरि गेल. जे सुनए ओ दस लोक केँ आओर सुनाबैथ. सब किओ एक्के बात कहैत छलथिन "बहुतो छोटा बाबु एलैथ आ गेलैथ मुदा रमेश बाबु सन किओक नइँ. एहेन मिलनसार लोक भेटनाई मुश्किल. गाम मे एना रीति गेलैथ जेना एहि गाम’क लोक होइथि." सब किओ ई जरुर कहैथ जे "हुनका जरुर किओ किछु अनुचित कहि देलकनि वा किछु अनुचित कऽ देलकनि".
रमेश कोन कारण सँ ट्रान्सफर करा लेलैथ से भोर भेने धरि समुचा गाम मे चर्चा’क विषय बनि गेल. आरोप प्रत्यारोप’क अनगिनत दौर चलल. कोनो एहेन लोक नइँ बचल छल जिनका उपर मे आरोप नइँ लागल हो. पैघ परिवार मे एक दोसर केँ दोषी साबित करय लागल, पुरान दुश्मनी वाला दू परिवार एहि मौका केँ भजेबाक कोशिश करए लागल आ दुनू गाम’क छुटभैया नेता लोक दोसर गाम केँ दोषी बताबे लागल. स्त्रीगण लोकनि, "मेम साहेब केँ के की कहने छल" तकर लेखा जोखा लगाबय लागलीह. सब किओ अपन स्तर पर काज करैत छल, आ रमेश केँ एहि बात’क पूरा समाचार भेटि रहल छलनि.
गाम’क पढ़ल लिखल आ प्रगतिवादी नवयूवक आपस मे तय केलथिन जे रमेश सँ गाम’क दिस सँ माफी माँगि लेल जाए. लगभग एक दर्जन एहेन यूवक’क टोली स्टेशन पर जाकेँ रमेश सँ अधिकारिक रुप सँ माफी माँगलकनि. मुदा नवयूवक’क एहि टोली सँ पहिने सैकड़ो लोक माफी माँगि चुकल छल. दोसर किओ आओर रहितैक तऽ कोनो आओर बात, गाम मे पढ़ल लिखल यूवक’क बहुत मूल्य होइत छैक आ रमेश ओहि मूल्य केँ नीक जेकाँ चीन्हैत रहैथ. तेँ हठाते ओहि टोली केँ निराश करए नइँ चाहैत छलाह. बिना मामला केँ तुल देने कहि देलैथ जे ओ ट्रान्सफर रोकबाक दर्खाश्त दऽ देताह. ई बात सेहो दुनू गाम मे पसरि गेल. गाम’क सब लोक एहि बात पर हठाते विश्वास नइँ केलनि. समाज दू मत मे विभाजित भऽ गेल. किछु लोक’क मत छलनि जे रमेश कोनो बात सँ आहत छलाह तेँ ट्रान्सफर करा लेलैथ. दोसर लोकनिक मत छलनि जे रमेश आई धरि कहियो फुसि नइँ बाजल छथि, तेँ ट्रान्सफर रोकेबाक गप्प सत्य थीक.
विश्वास-अविश्वास, उम्मीद-निराशा, कचोट-उत्साह’क आपाधापी मे ओ दिन आबि गेल जहिया रमेश केँ हमेशा’क लेल ई दू-गाम’क बीच वाला स्टेशन छोड़ि केँ जेबाक छलनि. एगारह बजे’क गाड़ी सँ ओ पूरे समान आ पत्नी सँग विदा होएबाक लेल तैयार छलाह. गाम’क लोक एखनो दू मत मे विभाजित छल. किछु लोक एखनो धरि सोचैत छलाह जे रमेश रुकि जायत. ट्रान्सफर नइँ भेल छनि. एहेन सोच जाहि मे कल्पना’क उड़ान बेसी आ यथार्थक धरातल कम. कल्पना’क बाते अलग, कोनो बात’क कल्पना करबा मे मालगुजारी नइँ लागैत छैक..
कल्पना’क उड़ान जतेक नीक लागैत छैक ओतबी कष्टदायक यथार्थ’क धरातल होइत छैक. एखन यथार्थ ई छल जे एगारह बजे’क ट्रेन प्लेटफार्म पर आबि चुकल छल. रमेश आ राधा ट्रेन मे बैसि चुकल छलैथ. गाम’क एहेन लोक जे यथार्थता’ केँ पहिने स्वीकार कऽ नेने छलैथ, रमेश’क लेल किछु ने किछु आनने छल. जे बेसी काल धरि कल्पना सवारी करैत छलाह ओ दौड़ि के गाम गेलाह आ रमेश’क लेल किछु ने किछु उपहार आनि नेने छलाह. हरियर दुबि पर ठाढ़ गार्ड सीटी बजा देने छल. ट्रेन अपन सीटे बजेलक आ नहुएँ नहुएँ ससरे लागल. लोक सब एखनि धरि रमेश केँ पोटरी थम्हा रहल छलाह. रमेश चाहियो केँ किनको मना नइँ कऽ पाबैत छलाह. किओ अदौरी, किओ कुम्हरौरी, किओ अम्मट, किओ पौती किओ मौनी. जेहेन लोक तेहेन उपहार. दूर ठाढ़ किछु स्त्रीगण लोकनि आधा छिधा घोघ तऽर सँ नोर पोछैत छलथिन. रमेश’क आँखि डबडबा गेलनि. बगल मे बैसल रेखा हुनकर भीजल पीपनी देखि नेने छलीह. अपन दाहिना हाथ सँ हुनकर बामा मुट्ठी पकड़ि नेने छलीह.
रमेश देखलैथ जे रेखा’क मुँह पर आशा’क अनन्त किरण पसरल छल. हुनकर ललाट आई सबसँ बेसी दैदीप्यमान लागैत छल. मोन मे एक सँतुष्टि भेलनि जे अपना लेल नइँ तऽ कम सँ कम रेखा’क लेल खुश रहबाक चाही. आखिर ट्रान्सफरो तऽ हुनके लेल करौने छलथिन. ओ खुश भऽ गेलैथ, मुदा क्षणिक देर’क लेल. गाम’क हजार लोक’क देखभाल वाला जिन्दगी छोड़ि ओ कलकत्ता’क काटि खा जेबा वाला एकाकी जिन्दगी रमेश केँ पहिल बेर असुरक्षित लागय लागलनि. हरियर दुबि आ लाल गुलमोहर’क छटा पाछु छुटि चुकल छल. रेखा’क हाथ एखनो धरि हुनकर हाथ पर छलनि. प्रत्येक स्पर्श एक सँदेश नुकाएल रहैत छैक. रेखा’क स्पर्श मे आश्वासन आ कृतज्ञता’क सँदेश छल. ट्रेन नरायणपूर-मुरली’क सीमा सँ बाहर निकलि चुकल छल. रमेश एक बेर फेर सँ रेखा’क ललाट पर सँतुष्टिक भाव पढ़बाक भरिसक प्रयत्न करय लागलाह.

ई चिठ्ठी हुनकर नाम 

प्रिय संजू!आइ नञि जानि किएक, अहाँ के चिठ्ठी लिखबाक मोन भऽ रहल अछि। ओना तऽ एहि सँ पहिनेहो कतोक चिठ्ठी लिखने छलहु, मुदा ई चिठ्ठी आन सब चिठ्ठी सँ भिन्न अछि। एहि चिठ्ठी के जखन अहां पढ़ैत रहब, तावेत धरि हम दूर ... बहुत दूर, क्षितिजक ओहि पार जा चुकल रहब। एही लेल जएबासँ पहिने हमर आंतरिक इच्छा छल जे अहाँ सँ भेट करी ... मुदा अपन सोचने थोड़बे होइत छैक ... होबाक तऽ वैह होइत छैक जे भाग्य विधाताक इच्छा रहैत छनि। आइ जेलक चाइर दीवारी में कैद भऽ कऽ ई चिठ्ठी लिखि रहल छी, सब कैदी निन्नमे छथि। अपन वार्ड मे मात्र हमहीं टा एकसरिए जागल छी। संजू ... जेलक जिनगियो बड़ अजीब होइत छैक ...। आंखिक आगू सबटा लहाशे नजरि अबैत अछि। एहिठामक सब आदमीयो एक जीवैत लहाश होइत छैक। कखनो-कखनो तऽ हमरा अपन शरीरो एक जीवैत लहाश बुझना जाइत अछि, साड़ी मे लेपटाएल, छटपाटइत लहाश ...। हम सपनो मे नञि सोचि सकैत छलहु जे एहन दिन देखऽ पड़त। एखनहुं तक बुझाइत अछि जे हम कोनो सपना तऽ नञि देखि रहल छी ...? डराएल सपना ...! मुदा यैह सत्य छैक-एक कटु सत्य!
संजू ...! आइ हमरा अहांक स्मरण बड़ आबि रहल अछि। अहां सदिखन कहैत छलहुं ने ... अनुभा अहां बड़ सुन्नरि छी ...! सृष्टि मे अहां सँ बेसी सुन्नरि त कियो छैके नहि ... आ हम लजाइत कहैत छलहुं-धत ... अहां के हरदम एतबे ... मुदा सत्ये कहैत छी-संजू ... यैह सब बात अतीतक स्मरण बनि कऽ रहि गेल अछि। आइ हमरा बीतल बात अनायास चलचित्रक भांति स्मरण होमए लागल अछि...हमर डैडी द्वारा अहांक अपमान। अहां तऽ जनैत छलियै जे हमर डैडी एक परंपरावादी व्यक्ति छलथिन्ह, समाज नामक कोढि़ के ओ अपन शरीर पर आक्रमण करबाक पूर्ण स्वतंत्रता दऽ देने छलथिन्ह, तखने तऽ ओ हमरा अहांक संग विवाह करबाक अनुमति नहि देले छलथिन्ह, फेर अहां गरीबक बेटा आ हमर डैडी लखपति... केहन विडंबना छल...?आखिर कहिया धरि परीक्षा होइत रहत गरीबी आ अमीरीक बीच पिसाइत प्रेम के? हमरा मन मे हरदम एहने प्रश्न उठैत रहल छल। फेर एक दिन अहूँ हमरा सँ संबंध तोडि़ चलि गेल छलहु, हम शिकारीक बाण सँ आहत भेल हिरणी जकां छटपटाइत रहि गेल छलहुं। हम राति-राति भरि कनैत रहैत छलहुं अहांक लेल मुदा लाचार छलहुं जे विद्रोह नहि कऽ पाबि सकलहुं। आइयो नारी कतेक बेबस अछि ई बात कियो हमरा सँ पूछए। एहि बातक उत्तर आखिर हमरा सँ बेसी बढिय़ा के दऽ सकतै अछि।डैडी हमर विवाह एक लखपतिक बेटा जयदीप सँ कऽ देलनि मुदा जयदीप आ हमर कुण्डली हरदम एक दोसराक विपरीते रहल। तइयो हम समय सँ समझौता करैत रहलहुं। जयदीप क्रूर स्वभावक व्यक्ति छल तखनो हम हुनक पूरा-पूरा खियाल रखैत छलियैन मुदा भाग्य के हुनक ई पूर्णता मंजूर नहि छलनि। संभवत: रुपयैवला व्यक्ति रुपैयाक सबसँ बेसी भुखाएल रहैत अछि से हमरा ओही समय ज्ञात भेल छल। सासुरक रहन-सहन सबसँ भिन्न छल। घरक सब सदस्य रुपैया प्राप्त करबा लेल किछुओ करबा पर तैयार रहैत छलाह, तखने तऽ हमरा अपन डैडी के घर सँ लाख-डेढ़ लाख रुपैया मंगबाक लेल पठाओल जाए लागल आ हम अपन डैडीक समक्ष निघोरत भऽ कऽ सब बातक बखान कऽ दैत छलियन्हि, किएक तऽ डैडी जहिया सँ अहां के अपमानित कएने रहथि तहिया सँ हमर हुनका पर सँ विश्वासे उठि गेल छल। डैडी हमर बात के चुपचाप सुनि हमर हाथ पर लाख-डेढ़ लाख रुपैया गट्ïटी दऽ दैत छलाह। ... मुदा ... डैडी के जेना जयदीप सँ धीरे-धीरे घृणा होमए लागल छलन्हि। कारण जयदीप बिना मतलबे हमरा मारहु लागल छल। पराकाष्ठा पर तखन भऽ गेल, जखन डैडी अपन सबटा जमीन-जाल, घर-घराड़ी अपन भगिनाक नामे लिखि देने रहथिन आ एहि संसार के अंतिम प्रणाम कऽ गेल रहथिन्ह। चूंकि हमर कोनो भाई नहि छल एहि दुआरे हमर पति आ हुनक परिवारक अन्य सदस्यगण हमरा सँ लाखोंक सम्पत्ति के आस लगओने रहथि, मुदा एहन नहि होबाक कारणे ओ लोकनि उग्र रूप धारण कऽ लेलनि।संजू ...! हम अपन कान सँ सुनने छलियै जे ओ सब हमरा मारबाक योजना बना रहल छल। फेर घर मे आबि कऽ हम खूब कानऽ लागल छलहुं मुदा हमर नार पोछनिहार कियो कहां छल ...? एहन मे हमरा अहां बड़ याद अएलहुं संजू ... बड़ याद अएलहुं। मन तऽ होइत छल जे भागि कऽ अहां लग चलि आबि मुदा आगिक समक्ष लेल गेल सात फेराक सप्पत रोकि देने छल।ओहि राति जखन हम थाकल ढेहिभाएल सुति रहल छलहुं कि जयदीप हमरा देह पर मटिया तेलक डिब्बे उझइल देने छल, हम हरबड़ाकऽ उठि गेल रहि आ लाइटर जरबैत पति के देखि ओहिठाम सँ भागबाक प्रयास करऽ लागल छलहुं, एहि भागम-भागक स्थिति मे सासु हमर साड़ीक खूट के खूब जोर सँ पकडि़ लेने रहथि। हम हुनको धक्का दइत केबार खोलि सड़क पर आबि गेल छलहुं। लेकिन ओतहु हम रुकलहुं नञि, दौड़ैत चलि गेलहुं ... नञि जानि कखन तक दौड़ैत रहलहुं ... तखने हमरा लागल जे हम स्टेशन पर आबि गेलहुं अछि आ बिना बुझने-सुझने सीटी मारैत एकटा गाड़ी पर चढि़ गेल छलहुं।अंतहीन यात्रा दिस हमर डेग बढि़ गेल छल। गाड़ी रुकल ... खुजल ... रुकल, मुदा हम ओहि मे सँ तखने उतरहुं जत्तए ओहि गाड़ी के अंतिम पड़ाव छलैक। चूंकि हमरा लग टिकट नहि छल ताहि दुआरे हम पकडि़ कऽ जेल पठा देल गेलहुं ...जेल मे हमरा एकटा महिलासँ परिचय भेल, जे हमरा नारी कल्याण नामक एकटा संस्थाक नाम कहने छल। जखन हम जेल सँ छोड़ल गेलहुं तऽ सीधे ओही नारी कल्याण संस्था गेल रहि, अपन कल्याणक हेतु, मुदा तखन हम ई नञि बुझि सकल छलहुं जे हम एक नर्क से दोसर नर्क मे पहुंचि गेलहुं अछि।संजू ... जाहि ठोर आ आंखिक प्रशंसा करैत अहां अघाइत नहि छलहुं से आइ वैह ठोर आ आंखि हमर जानक दुश्मन बनि गेल अछि। नारी कल्याणक सचिव हमरा हरदम अपन शरीर केँ बेचबाक हेतु विवश करैत रहैत छल। एक राति तऽ ओ हमरा सामने एकटा हठ्ठा-कठ्ठा खूंखार आदमी के हमर अस्मत लूटबाक लेल कहने छलैक! आ हम कोनो तरहे ओहि ठाम सँ जान बचाकऽ भागल छलहुं।एहि अंतराल धरि हम भीतरि सँ टूटि गेल छलहुं। मन आजीज-आजीदन भऽ गेल छल, कोनो रस्ता शेष नहि रहि गेल छल तखन हम सीधे थाना पहुंचलहुं आ ओहिठाम अपन व्यथा कथा सुनेलहुं। नारी कल्याणक विरुद्ध रिपोर्टों लिखबएने छलहुं। इंसपेक्टर अवनि सं जखन हम सबटा बात कहलियनि तऽ ओ तुरंते एस.पी. महोदय सँ फोन पर संपर्क केलनि। इंसपेक्टर हमरा संध्या सात बजे एस.पी. महोदयक निवास पर जएबाक बात कहलन्हि। निवासक बात सुनितहि तऽ हमर मन फेर डराऽ गेल छल आ भरिदेह पसेनाक बुन्न छोडि़ देने छल, मुदा ... दोसर रस्तो तऽ नहि छल ... सात बजे एस.पी.क निवास पर पहुंचलहुं।एस.पी. महोदय बड़ स्नेह सँ भीतरि बजेलन्हि आ बैसबाक इशारा देलन्हि। जाहि स्नेह आ अपनत्वक प्रदर्शन ओ कएने रहथि, ओकरा देखि कऽ तऽ हम एकदम निश्चिन्त भऽ गेल रही, आ पूर्ण सुरक्षित सेहो बुझऽ लागल छलहुं। एस.पी. साहेब सबटा बात के ध्यान सँ सुनने छलाह, मुदा... मुदा किछुए कालक बाद गिरगिट जकाँ रंग बदलऽ लागल छलाह ... आ हमरा लगमे आबि कऽ बैसि गेल छलाह। एकाएक हमरा भरि पाँज ...! हम कसमसाए लागल छलहुं ... ओ धमकी दैत हमरा आत्मसमर्पण करबा लेल बाध्य कऽ रहल छलाह ...। हमर सुतल नारीत्व जागि उठल छल आ हम टेबुल पर राखल तरकारी काटऽवला चक्कू उठा कऽ एस.पी. के डराबए लागल छलहुं ... मुदा हवसक भुखाएल ... मानऽबला कहां छल, ओ हमरा लग अबैत गेल... कि तखने हम पूरा जोर सँ चक्कू ओकर पेट मे घोंपि देने छलियैक ...। नञि जानि कोन दैवीक प्रेरणा हमरा एहन करबा लेल विवश कऽ देने छल। चेतना जखन वापस आएल तऽ हम चिचिआ उठलहुं आ भागबाक प्रयास करऽ लगलहुं, मुदा कतऽ मांगि सकैत छलहुं ...? हम पकडि़ लेल गेलहुं आ हमरा पर मुकदमा दायर कऽ देल गेल, अदालत फांसीक सजा सुनेलक अछि। काल्हिए हमरा फांसी पड़बवला अछि। ऐहन विकट स्थिति मे अहां बहुत याद आबि रहल छी। मधुर स्मृति तऽ सौ वर्षक बादो ओहिना टटका बनल रहैत छैक ने ...?संजू ... हमरा ज्ञात भेल अछि जे अहां एखन धरि विवाह नहि कएलहुं अछि। की! अहां हमर एकटा बात मानब ...?विवाह अवश्य कऽ लेब ... आब तऽ अहां के प्रमोशन सेहो भऽ गेल हैत! संजू ... जाधरि अहां विवाह नहि करब ताधरि हमर आत्मा के शांति नहि भेटि पाएत! एक वचन अहां सँ हम आओर लेबऽ चाहैत छी, बाजू पूरा करब ने ...?अहां अपन पत्नीके खूब पे्रम करबनि। हमरो हिस्साक प्रेम अहां हुनकहि देबनि, जाहि सँ हमर आत्मा सेहो अपन हिस्साक प्रेम पाबि कऽ हरदम अहांक लगेने रहत ... हरदम अहांक लगेने रहत ...।अहींक अनुभा, सेंट्रल जेल।

नांगट जमाय 

हकासल पियासल लाल काकी दौडल अयलहि। भट-भट आँखि सँ नोर खसैत, "यै बहिन... कनि चलथुन्ह है... ओझा मौहक नहि करैत छथिन्ह", नूआक खूट सँ आँखि पोछैत बजलीह। त' बहिन आने की पुरैनिया वाली काकी तुरते पएर मे चप्पल पहिर संग धेलिह।काजक आंगन... भरि आंगन लोक पसरल। सबहक मुँह पर परेशानी... नेना-भुटका के छोडि कय... ओ सब मिलि कय कलोल करय मे लागल छल।"यै बडकी काकी... कनि अहीं देखियौक... ऊह एहने पर...। कियौ बजने छल...। बडकी काकी माने पुरैनिया वाली काकी... सीधा वर लग कोहबर मे पहुँचली... अन्हार घर मे कोठी लग परहक बिछौन... पटिया पर सतरंजी आ' एक गोट नव चादरि बिछैल... कोहबर मे पुडहैर मे जरैत दीपक मद्धिम सन ईजोत... वर दूहु हाथ सँ गेरुआ केँ करेज सँ दबौने कनी-कनी झूलैत पटिया पर बैसल छलाह। घरक दोसर कोन मे चंगेरा, डाला, पातिल सब राखल। ओसारा पर विधकरि माटिक चूल्हि पर खीर पका क' दूनू थारी मे निकालि नेने छलीह, पितियौत सारि ओहि सँ कनेक फराक ठाम करि क' पिठार आ' सिनूर सँ अरिपन बना कम्बल बिछबैत छल ।
दुनू थारी दुनू दिस राखल जा चुकल छल। गितहारि गीत गाबय लेल झुण्ड मे बैसल बेकल भए गोसाउनिक गीत शुरु कय देने छलीह 'अहिं के पूजन हम अयलहुँ भवानी.......'।घरक चौखटि पर बैसल बडकी काकी एक नजरि सँ ओसारा आ आंगन दिस देखलन्हि.... आ दोसर नजर सँ वरक दिस। वर लग बैसल दू-तीन टा धिया-पूता केँ भगबैत बजलीह, "जो तू सभ बाहरि खेलि ग, कनि हमहूँ ओझा सँ गप करैत छी"। आ ससरि क' वरक पटिया लग आबि गेलिह।"ओझा अहाँ कियैक एना घिनौने छी... कतेक बदनामी भए रहल अछि ।" बडकी काकी जे देखय सँ मातबर लागय छलीह, सोनक गहना पहिरने रंग-रूप सँ सेहो। वर कनेक हडबडेलाह... "नै काकी... हमरा ठकल गेल... लडकी बदलि देल गेल... हम त'... हम त'... ।"की हम त'.. हम त' लगौने छी... आ' लडकी बदलि देल गे से शंका कोना... अहि टोल मे विवाहक जोगरि एक गोट यैएह टा कन्या छल... ओहो अहाँ सँ हजार कच्छ नीक छैक...।" काकी कनेक तमसा गेलीह... "परिछनो काल राति मे अहाँ अहिना घिनौने रही... पूरा समाज देखलक... कियो टीक नोचि लेलकै... कियो बरद कहि देलकै... विवाह करय लोक जायत अछि त' वर के बड बात-कथा सूनय पडैत छै... ई सभ शोभा-सुंदर होयत छै। मुदा अहाँ त' सभ गप पर मारि-पीट करय लेल फाँड बान्हि लैत छी... । अहाँ केँ माय किछु नहि सिखौलन्हि की... उठू.. मौहक करू... बेर शीतल जाय छैक...।पता नहि की भेलय, जादू वा भूख लागल रहै, वर सत्ते मौहक करय पहुँचि गेलाह... आंगन मे स्त्रीगण सब जोर सँ ठहक्का लगौलक। मुदा वर मुँह नीचा गारने खीर खाइत रहलाह ' खीर खाइयो नै लजाईयो ओझा...' आ हँसी-ठठ्ठाक बीच मौहक भेल।ई अजगुत वरक खिस्सा गरमी क' दुपहरिया मे खाली समय मे घरे-घर लागल... आ की कुमारि की बियाहल... सब एक-दोसर के कहनाय शुरु केलक ' हे गे अराधना... हे गे सपना, ममता चलबै ओहि टोल... पूनमी के वर देखय...। आ जे कहियो हुनक अंगना मे नहि आएल छल... सेहो सब आयल एहि अजगुत वर के देखए लेल...।"सभा सँ भेल की घर कथा सँ... " मेहथ बाली जे बडका बेटा लग सँ काल्हिए आएल छलीह पुछलखिन्ह तए लाल काकी बड दुखी भ' बजलथि, "बहिन... घर कथे छै... पिण्डारुछ बला ओझा त' करबेलखिन्ह... लडका नौकरीहारा दिल्ली मे मनेजर छै... लाख टका मे... बेटी रानी बनि क' रहत... कियो मोडि नै दियै... ताहि लेल चुप्पे छलहुँ..."। कनिया के मायक आँखि सँ भट-भट नोर खसय लगलन्हि... त' अपन नवका नूआक खूट सँ आँखि पोछि लेलीह। मेहथ वाली धीरज धरैलन्हि "कथी लेल कानैत छी... आब धिया के जे कपार... जे विधि रचने होयथि... आब हिनके आसीरबाद दियौन्ह... सोना चाँदी त' फेरलो जाए छै मुदा सिन्दूर फेरलो नै जाए... ।"मेहथ वाली काकी अपन घर आबि गेलीह मुदा मोन मे प्रश्न घुमैत रहलन्हि 'एक लाख मे एहने वर... एक त' कारी धुत्थूर... बडका टीक... नाक प तामस... बाजय के सबूर नहि... कोन मनेजर हेतैक। मोने मोन ओ तर्क वितर्क मे लागल छलीह। कतहुँ सँ बेसी पढल-लिखल नहि लागैत छल। बरातियो मे कोनो जान नै... जे गहना आ वस्त्र कनिया लेल आयल छै सेहो थर्ड किलास...। ओ अपन बहिन धी के फोन लगौलखिन्ह... पिण्डारुछ के छथि जमाय... दिल्ली मे पुलिसक बडका अफसर। अपने उठौलन्हि फोन। "कोन पिण्डारुछ बला के एहि गाम मे विवाह करौलियन्हि ओझा जी... कत्त' मनेजर छै.... । आ सब टा खिस्सा सुनि ओ गुम सुम रहि गेलीह।दोसर दिन भेने फेर लाल काकी दौडल अयलीह... मुँह सुखैल... हकासल पियासल, "बहिन यै... कहै छैथ ओझा... बिन दुरागमने ल' जायब कनिया के... कनि चलथुन्ह... बडका नाटक शुरु केने छैथ फेर... अंगरेजी मे कीदन कीदन बाजैत छैथ।लाल काकी के जखन कोनो मोसीबत पडैन्ह तए अपन एहि दुनु पडोसिया के घर जा क' मिनती करय लागथि। लाल कका कमाए लेल कलकत्ता जाए लगलाह त' अपन परिवार के एहि दुनु परिवारक भरोसे छोडने गेलाह। बडकी बेटी के विवाह मे जे कर्ज भेल छलैन्ह से आय पाँच बरखक उपरांत सेहो नै सधल छल। आ ओकरा बाद छोटकी बेटीक विवाहक कर्ज। ओतय हुनक माडवारी मालिक राति दिन खून चूसि चूसि ऋण सधबैन्ह। छोटकी के कन्यादानक पराते जखन बडका कका के दलान पर बरियाती पसरलै छल हुनका कलकता क' गाडी पकरबाक लेल मधुबनी टीसन दिस कएक मोनक पएर नेने प्रस्थान करय पडल छलैन्ह। बेटा सेहो ओहि ठाम काज करैत छल। ओकरा त' बहिनक विवाहक लेल छुट्टी सेहो नहि देलकैक।मेहथ वाली काकीक बहिनधी सुगन्धाक विवाह पिण्डारुछे भेल छल। ससुर गामक मुखिया छलखिन्ह। चतुर्थीक परात मेहथ बाली काकी जे डील-डौल सँ बेस लमगर आ कनि भारी भरकम छलीह, माथ पर नुआ राखि पान खाइत दुपहरिया मे लाल काकी के आंगन पहुँचल छलीह। असगर घर मे वरक समक्ष बैसि बड महीन स्वर मे पुछलखिन्ह, "ओझा... मधुकर बाबू के चिन्हय छियैक..."।"हँ काकी, कियैक नहि ओ त' हमर सबहक दियादे छथि। हमर परदादा पाँच भाय आ ओहि मे एकटा ओ सब छथि ।""हमर सबहक बड पुरान कुटुम छथि, कनकपुर विवाह छन्हि हमर बहिनक बेटी सँ। मुदा ओहि खानदान मे त' कियो नहि सासुर मे जा क एना उधम मचौने छल। बड भलमानुष लोक सब छथि।" वर एकदम चुप। 'आय धरि कियो वर एहि गाम सँ कोनो बेटी के जबरदस्ती बिन दुरागमन के नहि ल' गेलैए... अहाँ कोना ल' जेबए, उचित लगतैक... । एक सँ एक जमाय अयलाह एहि गाम मे।''उचित वा अनुचित की... ।' वर अपन औकात पर उतरि कुतर्क करय लागल 'हमरा संग... ।' "ओझा अहाँ केँ शिक्षा नहि भेटल अछि की बुजुर्ग सँ कोना व्यवहार करबाक चाही... । कनिया के पिता परदेस मे छथि... अडोसिया-पडोसिया संग द' रहल छैन्ह... आ' हुनक माता के अहाँ एना परेसान केने छी... ।"धड आ माथ झुकौने वर पलथा मारने गुमसुम बैसल छल। वर के पस्त देखैत काकी के मनोबल बढलैन्ह। ओ अपन माथ पर सँ ससरैत नुआ के संभारैत बजलीह, "सब खिस्सा करैत अछि जे वर भंगतडाह छै... कखनो ठक बक चिन्हबा काल मे बकझक... कखनो पान सँ नाक पकरबेबा मे इंकार... ई लच्छन दिल्ली मे मनेजर लडका के लगैत छै। हमरा त' लगैत अछि लडकी बला नीक जेंका ठका गेलाह... कोन कम्पनी मे अहाँ मनेजर छी। की अहाँ के एक लाख दहेज लेबाक चाही।वर के माथा ठनकलै। ओ माथा उठौलक, 'की हम मनेजर नहि छी...।' लाल टरेस आँखि सँ हुनका घुरैत कनि कडगर आवाज मे बाजल।"अहाँ मनेजर नहि छी, छोटका-मोटका सेठक फैक्टरी मे चौकीदार छी। हमरा मधुकर बाबू... बहिन जमाए... सबटा कहलन्हि जे अहाँ के नौकरी लगौने छथि... आईये फेल कतओ मनेजर होयत छैक....।" काकी एक-एक शब्द पर अटकैत बजलीह।आब तए ओकर सिट्टी-पीट्टी गुम। वर टुनटुन बाबू घिघियाय लगलाह, 'काकी गोर लागैत छियैन्ह... हिनक पएर छूबि सप्पत खाय छी... जेना इ कहथिन्ह सैह हेतैक'मेहथ वाली काकी सहृदय स्त्री छलीह। हुनका व्यर्थ खिस्सा, परनिन्दा करय के आदत नहि छलन्हि। आब वर सरकसक जानवरक जेकां हुनक आदेश पर नाचय लेल तैयार छल। हुनका बड प्रसन्नता भेलन्हि। चलू केकरो कन्या के जीवन सुखी करबा मे किछु त' सहायक भेलहुँ।"ठीक छै, विवाहक साल भरिक भीतर दुरागमन करब, ता धरि हमरो गाम पर पक्का मकान बनि जायत आ बाबूजी सेहो गामे मे रहताह। बड नीक जेकाँ बोल भरोस दए क' वर टुनटुन बाबू सौसक पएर छुबि विवाहक पन्दरहम दिनक बाद दिल्लीक लेल प्रस्थान करए सँ पहिने अपन गाम जा रहल छलाह।लाल काकी निश्चिंत आ बेटी सुनन्दा बड प्रसन्न लागि रहल छलीह। सुनन्दा बड सुन्नर त' नहि मुदा अधलाह सेहो नहि छलीह... नव उमरि... नव-नव सिन्नूर माथ पर एकटा विशेष आभा देने छलैन्ह। कनिया सँ विदा होमय काल वरक मुँह पर सेहो विह्वलताक भाव छलैन्ह। कनिया कोठीक पाछां जाकय कानय लागल छलीह।सौंसे टोल मे की पूरे गाम मे एकटा मेहथ वाली काकी के घर मे फोन छलैन्ह। परदेसिया बेटा सब लगा देने छल। आ' सब किओ अपन फोन सुनए लेल आबैत छल, खास करि क' टोलबईया। वरक पहिल फोनक खबरि सुनि सुनन्दा बिहाडि जेकां दौडल आयल छलीह। मेहथ वाली काकी ओहि कोठरी सँ हटि जाए छलीह... जखन-जखन फोन आबय। बड काल धरि गप्प चलै। किछु चिठ्ठीयो आबय लगलै... एहिना कए दिन बीतैत रहलै। काकी के सब धिया-पूता परदेसिये छलन्हि। बेटी सब अडोस-पडोसक गाम मे नीक घर मे बियाहल गेल छलीह। मुदा सब किओ आब कलकत्ता, बम्बई रहनिहार भ' गेल छलीह। काकी कने व्यापक लोक छलीह। कका जे सदिखन बेरामे रहैत छलाह... हुनक सेवा-सुश्रुषा करैत दिन बड नीक जेकां बीतैत छल। उमिर सेहो पचपन-छप्पन सँ बेसी नहि छलैन्ह। मुदा विधि के विधान की कहल जाए। एक राति सुतलीह त' सुतले रहि गेलीह। भोरे सोर होमय लगलै। बेटा-बेटी हवाई जहाज सँ पटना पहुँचि जेना-तेना जल्दी-जल्दी गाम पहँचलाह। समय पर सबटा काज बड्ड नीक जेकां सम्पन्न भए गेलए। एम्हर सुनन्दाक विवाहक साल भरि होएबा मे डेढ मास रहि गेल रहै। चिठ्ठी पर चिठ्ठी पठाओल गेल तए सुनन्दाक सासुर सँ दिन सेहो आबि गेल। फगुआ सँ दस दिन पहिने के।वर टुनटुन बाबू दिल्ली सँ अपन गाम आ गाम सँ दोसरे दिन सासुर। ससुर आ सार सेहो कलकत्ता सँ आबि गेल छलाह। घर मे खूब चुहचुही छलैक। भनसा घर मे तरुआ-तिलकोर छना रहल छल। टुनटुन बाबू के जहिना खबर भेटलन्हि मेहथ वाली काकी गत भ' गेलीह ओ गँहीर स्वांस लैत एकदम्मे चुप भ' गेलाह। कनिया बुझलखिन्ह दुखी भए गेल छथि। काकी छेबो केलखिन्ह बड नीक... केकर नै मददि केने होयतीह... हुनका लग जे अपन परेशानी लए क' जाय... जौं हुनका वश मे होइन्हि तए अवस्से दूर करए के कोशिश करतथि। आ सुनन्दा के त' कतेक बेर अपना ओतए सँ फोन सेहो करए देने छलखिन्ह। कनि काल मे वर घर सँ उठि क' बाहर चलि गेलाह। कनि देर दलान पर बुलैत-टहलैत टुनटुन बाबू अंगना एलाह। तए सौस के बजा के कहलखिन्ह "विवाह मे तए ई सब ठकबे केलथि... की दुरागमन मे सेहो ठकती...। रंगीन टीवी.. मिक्सी.. स्कूटर.. फर्नीचर.. कत्तो देखाए नहि पडि रहल अछि। दुरागमन मे तए ई सब चीज अवस्से हेबाक चाही नै। बिना एहि वस्तु के दुरागमन केहेन।लाल काकी अकबकाएल सन रहि गेलीह। दस दिन मे एतेक चीजक जोगाड कोना भ' सकैत अछि। अखने लाल कका कहुना क' किछु पैसा एडभांस लए के कलकत्ता सँ दुरागमन के लेल आएल छलाह। ई साठि-सत्तर हजारक आओर पैंच उधार के देत।काकी चुपचाप धड खसौने लाल कका लग अपन छोटका दलान पर आबि बैसि रहलीह। कका के ई सब सुनि जेना हाथक तोता उडि गेलन्हि। बड फज्जति करि क' हुनक मालिक पच्चीस हजार अगेवार देने छलैन्ह। अथाह चिंता मे डूबल... जेहो... दू-तीन बीघा खेत छलैक... पहिने सँ भरना छलैक। आब लोक केबाला सेहो करबा नेने छल। बचल घडारी, पैंतालीस धूर.. ईहो बन्धकी लेनिहार एतए के। जौं लईयो लैत अछि तए एतेक पाय कत्त सँ देत। कका कतेक काल धरि दलान पर राखल चौकी पर बैसल रहि गेलाह। बेटा मधुबनी गेल छलैन्ह चीज वोस्त सब बैसाहय। बेर खसैत देखि काकी भानस बनबय लेल आंगन जाय लगलीह तए देखैत छथि... बाडी मे ठाढ बड बेकल भ' मुँह पर नुआ राखि सुनन्दा कानि रहल छलीह। मोन पहिने सँ दुखी... आओर घबरा गेलन्हि। बड्ड सप्पत्त दय पुछलखिन्ह त' बजलीह 'ओ अपन गाम चलि गेलाह, कहलथि जे जा धरि हमरा सबटा सामान नहि भेटत ता' हम दुरागमन नहि करब।' ओहि राति मे घर मे भानस नहि बनलै। पानिए पीबि कए सब लोक सूति रहल छलाह। एकर बाद कतेक परात भेलए... कतेक दुपहरिया आ राति भेलए...। अनका केकरो सँ एक दिन खबरि भेटलै... टुनटुन बाबू रुसिकए दिल्ली चलि गेलाह। आब नै कोनो चिठ्ठी.. नै फोन...। सुनन्दाक आँखि कनैत-कनैत सदिखन लाल टरेस भेल रहैत छै। मुँह पर जे हरीयरी आयल छलैक सेहो उडि गेलए... मुरझायल सन।आ बड्ड सोचि विचारि क ' बेटी के दुख देखबा मे असमर्थ बाप एक दिन फेर कलकत्ता दिस पएर बढा चुकल छलाह। सोचने छलथि आब गामे मे रहब। बेटा मुरली सएह ऋण सधौत... मुदा विधिक विधान... टाकाक इंतजाम मे बीमारी आ बुढापा मे हुनका फेर चाकरी करय लेल परदेस जाय पडि रहल छल।